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भारत में अंगरेज़ी राज

१५३० भारत में अंगरो राज कु बरसिह का व्यक्तिगत चरित्र अत्यन्त पवित्र था, उसका जीवन परहेज़गारी का था । यहाँ तक कि लिखा कुंवरसिंह का है उसके राज में कोई मनुष्य इस डर से कि चरित्र कहीं लुफंवरसिंह न देख ले, खुले तौर पर तम्बा तक न पीता थ उसकी समस्त प्रजा उसका बहुत बड़ा श्राद्र और उससे प्रेम करती थी। युद्ध कौशल में वह अपने समय में श्रद्वतीय था । कुंवरसिंह के बाद उम्मका छोटा भाई अमरसिंह जगदीशपुर की गद्दी पर बैठा । अमरसिंह ने बड़े भाई के आमरसिंह राजा मरने के बाद चार दिन भी विश्राम नहीं लिया। केवल जगदीशपुर को रियासत पर अपना अधिकार बनाए रखने से भी यह सन्तुष्ट न रहा 1 उसने तुरन्त अपनी सेना को फिर से एकत्रित कर प्रारा पर चढ़ाई की । लीटैण्ड की सेना की पराजय के बाद जनरल डगलस औौर जनरल लगर्ल्ड की सेनाएँ भी गद्दा को पार कर मारा की सहायता के लिए पहुँच चुकी थीं। ३ मई को राजा अमरसिंह की सेना के साथ डगलस और तरार्ड की सेनाओं का पहला संग्राम हुआ । उसके बाद बिदिया, हातमपुर दलीलपुर इत्यादि अनेक स्थानों पर दोनों सेनाओं में अनेक संग्राम से हुए। अमरसिंह ठीक उसी प्रकार की युद्ध नीति द्वारा अंगरेजी सेना को वार बार हराता और हानि पहुँचाता रहाजिस प्रकार , की युद्ध नीति में कुभंवरसिंह निपुण था । निराश होकर १ जून को जनरल लगर्ड ने इस्तीफा दे दिया । लड़ाई का भार अब जनरल