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भारत में अंगरेज़ी राज

१६२२ भारत में अंगरेज़ी राज सातवीं धारा में उन्होंने यह प्रसम खाई कि हम श्राप से और अधिक कुछ न लेंगे । इसलिए यदि को जो इन्तज़ाम करंपनी ने कर चुके हैं वे सब दूर किए जायेंगे तो इससे पहले की हालत में और अब इस नई हालत में बया अन्तर हुआ है ये सब तो पुरानी यादें हैं। फिन्तु हाल में भी ज्ञासों पर प्रहारों को तोड़ कर, और बावजूड़ इस बात के कि अंगरेजों ने हमसे करोड़ों रुपए की ले रफ्खे थे-—उन्होंने बिना किसी सबब के केवल यह बहाना लेकर कि ग्राफा व्यवहार अच्छा नहीं और प्रापकी प्रज्ञा असन्तुष्ट है, हमारा मुल्क और करोड़ों रुपए का माल हमसे छीन किया । यदि हमारी प्रजा हमारे पूर्वाधिकारी नवाय वाजिदश्ती शाह से प्रसन्तुष्ट थी, तो वह हमसे सन्तुष्ट कैसे हो गई ! और कभी किसी भी नरेश के लिए प्रजा ने अपने जान और माल को इस तरह क़ुरबान करके अपनी राजभक्ति का परिचय नहीं दिया जिस तरह कि हमारी प्रजा ने हमारे साथ किया है। फिर क्या कमी है कि वे हमारा मुल्क हमें वापस नहीं देते है इसके अतिरिक्त उस एलान में किखा है कि मलका को अपना इलाफ़ा बढ़ाने की इच्छा नहीं है, फिर भी वह इन देशी रियासों ) को अपने राज में मिला लेने से बाज नहीं रह सकती 18 x ‘डस एलान में लिखा है कि ईसाई महब ‘सच्चा' है, किन्तु और किसी मज़हब वालों के साथ ज़्यादती न की जायगीऔर सय के साथ एक समान कानूनी व्यवहार किया जायगा । न्यायशासन से किसी मज़हब के सच्चे या बूढ़े होने से क्या सम्बन्ध है ' x f सुमर खाना और शराब पीना, चबी के कारतूस दाँत से काटना औौर आटे और मिठाइयों में सुअर