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भारत में अंगरेज़ी राज

१६७६ भारत में अंगरेजी रा ज। A इतना सवाल न था जितना अंगरेजों की इच्छा का 1 इसके बाद ए. ह किसी को भी इस विषय में सन्देह नहीं हो सकता कि भारत के का शासन कम्पनी के हाथों से लेकर इइलिस्तान के मन्त्रिमण्डल के हाथों में देने का ख़ास देश भारतवासियों को लाभ पहुंचाना है न था, बल्कि भारत के सर्वोत्तम प्रदेशों में यूरोप निवासियों के । उपनिवेश बना कर भारतवासियों को अपने गोरे मालिकों के लिए "लकड़ी चीरने बारहों और पानी भरने वालों” की अवस्था तक पहुँचा देना था। कम्पनी के शासन को अन्त कर देने में हो अब अंगरेज़ नीतिज्ञों को भारत में अंगरेजी राज की स्थिरता और उसका भावी हित दिखाई देता था। बिप्लब के पूरी तरह शान्त होने से पहले ही भारत का शासन कम्पनी के हार्षों से लेकर इनलिस्तान की २मल का विक्टोरिया -में दे तक सरकार के हाथ दिया गया । ; चिपटोरिया उस समय इङलिस्तान के सिंहासन पर थी। हिन्दोस्तान के राजाओंरईस, सरदारों और समस्त प्रज्ञा के नाम मलका की ओर से एक एलान प्रकाशित किया गया, जिसका ज़िक्र हम ऊपर एक अध्याय में कर चुके हैं । सार रूप में । इस एलान के अन्दर नए अधिकार परिवर्तन की सूचना दी गई, है-' भारतवासियों को सलाह दी गई कि वे मकाउसके उत्तरा धिकारियों और उनके द्वारा नियुक्त अफ़सरों के सदा वफ़ादार रहें। लॉर्ड कैनिज्म को भारत का पहला वाइसराय नियुक्त किया गया, देशी राजाओं को यह विश्वास दिलाया गया कि जो सन्धियाँ ! का एलान