पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज.pdf/६५२

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१६८७
सन् १८५७ के बाद

सन् १८५७ के बाद १६८७ . धिक उद्देश यह है कि हिन्दीवान में अलरेजों को बसने के लिए प्रोरसाहित किया जाय, तो x हैं ” मेरी राय है कि ईं x & आंद्रे अपने बादशाह के स्थान पर किसी बीच की का अधिकार स्वीकार न करेंगे 1 हैं कपनी में समाता हैं कि न केवल श्रन्रेनों को भारत में उपनिवेश बनाने के लिए प्रेरित करने पर प्रोरसाहित करने के लिए ही, यदिक उस आरंयन्त विशाल देश पर प्रपना प्रभुत्व जमाए रखन के लिए भी भारत के शासन में फ़ौरन गहरे परिवर्तन की जरूरत है, और इन परिवर्तनों के लिए केवल सभी मार्ग तैयार किया जा सकता है जघ कि कम्पनी की जगह इस लिस्तान के बादशाह का नाम ऑीर यादगाह का अधिकार कायम कर दिया जाय ।’’ कम्पनी तोड़ दी गई । भारत में कई स्थानों पर खास कर, कई ज़रवेज़ पहाड़ी इलाके में अंगरेज़ों की बस्तियाँ बसाने की जी तोड़ कोशिशें की गई । इन कोशिशेंर्गों का विस्तृत इतिहास हमारे प्रसंग से बाहर है t किन्तु वावजूद कम्पनी के तोड़ दिए जाने के और बावजूद इन तमाम कोशिॉ, कमेटियों, गवाहियाँ, सुविधाओं इराओं और उत्तेजना के पिछले १० साल के अन्दर संसार के श्रन्य देशों की तरह हिन्दोस्तान में अंगरेज़ों की बस्तियाँ नाबाद न हो सकीं। इस सफलता की बाद बयान करते हुए टाउनसेण्ड प्रपनी पुस्तक ‘शिया एण्ड यूरोप' में लिखता है :- कहा जाता है कि हिन्दोस्तान में गोरों (यूरोपियन) की कमी का कारण यों की आबोहवा है, किन्तु यहाँ की पहाड़ियों पर भी तो कोई अड्रेप्ड जाकर नहीं पसता । अमरे न्यू साउथवेल्स ( ऑस्ट्रेलिया ) के गरम मैदानों में रहते हैं, अमरीका के गोरे लोग हैं ” मैं प्रलोरिडा (मध्य अमरीका) के उन