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भारत में अंगरेज़ी राज

१६८८ भारत में अंगरेजी राज मैदानों में भरे हुए हैं जिनमें मारे गरमी के भभू उठते हैं, स्पेन के लोग, दो अमरीका ओं के गरम प्रदेशों में एक शासक जाति की हैसियत से घसे हुए हैं; डच लोग जावा में रह रहे हैं; किन्तु अंगरे, चाहे उन्हें कितने भी प्रलोभन क्यों न दिए जाएँ, भारतवर्ष में नहीं ठहर सकते । ऐसे ज़ोरों के साथ उनकी तबियत ऊयती है, इतने ज़ोरों के साथ वे इस बात को अनुभव करने लगते हैं कि हम यहां पर देश के निवासियों से बिलकुल अलग पर- देशी हैं, कि फिर चाहे उन्हें कितनी भी कुरबानी क्यों न करनी पड़े, धन पदवी या अपने सुखकर कारबार में उन्हें कितनी भी हानि क्यों न सहनी पड़ेवे चुपचाप वहां से खिसक कर यूरोप चले आते हैं ।” निस्सन्देह भारत की भूमि के अभी तक अंगरेज़ी उपनिवेशों के शाप से बचे रहने को असली वजह यह है कि भारत एक प्राचीन, विशाल और अत्यन्त घना वसा हुआ देश है । अंगरेजें के लिए न यहाँ की करोड़ों जनता को मिटा कर उनकी जगह लेना इतना सरल है जितना ऑस्ट्रेलिया के अर्धसभ्य आदिवासियों को मिटा कर उनकी जगह लेना, और न वे यूरोपनिवासी, जो अभी तक सभ्यता' के उच्चतर मुद्दों में भारतवासियों से कहीं पीछे हैं, जिनके और भारतवासियों के चरित्रों, रहन सहन और ; आाद में इतना ज़बरदस्त आन्तर है, बिना अपना जातीय व्यक्तित्व खोए भारतवासियों के साथ किसी तरह भी मिल जुल कर भारत में रह सकते हैं । • Meredith Tonsend's Asia and Eurotp, 87.