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नायक नायिका विचार

 

शब्दार्थ—मानवतिन–मान करने वालीं।

भावार्थ—जिन जिन बातों के कहने से मानिनी का मान दूर होता है उन उन बातों को कहनेवाला पीठ मर्द कहलाता है।

सवैया

देखि जिन्हे उमगै अनुराग, सु फूलि रहौ बन बाग चहूँ है।
मानु तजौरी पुकारि पिकी कहै, जोबन की करिबे न अहूँ है॥
सोर करें सब ओर अलीगन, कोप कठोर हिये अजहूँ है।
देखौ जू बूझि मने अपने हू को, ऐसो समो सपने हू कहूँ है॥

शब्दार्थ—उमगै अनुराग–प्रेम उत्पन्न हो। अहूँ–अहंकार, घमंड। अजहूँ–अबभी। सोर–शोर, कोलाहल। अलीगन–भौंरे। समौ–समय। सपने हूँ कहूँ है–कहीं सपने में भी है?

विट्
दोहा

बचन चातुरी कों रचै, जानै सकल कलानि।
ताही सों विट् सचिव कहि, कविवर कहत बखानि॥

शब्दार्थ—कलानि–कलाओं को।

भावार्थ—बातें करने में चतुर तथा सब कलाओं को जानने वाला विट् कहलाता है।

उदाहरण
सवैया

जाहि जपै त्रिपुरारि मुरारि, सबै असुरारि सुरारि हने हैं।
जाके प्रताप त्रिलोक तचै न, बचै मुनि सिद्धि समाधि सने हैं॥