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अलंकार

उदाहरण (ऊर्जस्वल)
सवैया


देव दुरन्त दमी अचयो जिहि, कालिय को लै घरयो सुब ह्वै है।
कौलो बको हौं बकी बकवक्ष, अघारिक को अघु कै—कै अघैहै॥
कान्ह के आगे न काहू को कोप, कहूँ कबहूँ निबह्यो न निबैहै।
छाड़ि दै मानरी मान कह्यौ, कहुँ भानु को तेज कृसानु पै रैहै॥

शब्दार्थ—भानु—सूर्य। कुसानु—अग्नि।

उदाहरण (सूक्ष्म)
सवैया


बैठी बहू गुरुलोगनि में लखि, लाल गये करिके कछु औल्यो।
ना चितई न भई तिय चंचल, देव इते उनतें चितु डोल्यो॥
चातुर आतुर जानि उन्हें, छलही छल चाहि सखीन सों बोल्यो।
त्योंही निसङ्क मयङ्कमुखी दृग, मूदि कै घूघट को पट खोल्यो॥

शब्दार्थ—औल्यो—बहाना। मयङ्कमुखी—चन्द्रमा के समान मुख वाली। दृग मूंदि कैं—आँखें मूंदकर।

३२-३३—प्रेम और क्रम
दोहा


कहिये जो अति प्रिय बचन, प्रेम बखानौ ताहि।
उपमा अरु उपमेय को, क्रम सुक्रमोक्ती आहि॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—जहाँ अतिप्रिय वचनों का वर्णन किया जाय वहाँ प्रेम और जहाँ उपमा उपमेय क्रम से वर्णन किये जाँय वहाँ क्रमालंकार होता है।