सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१६४
भाव-विलास

 

उदाहरण
कवित्त

केस भाल भृकुटी नयन श्रुति औ कपोल,
नासिका अधर देत चिबुक बिचारिये।
कंठ कुच नाभी त्रौली रोमावलि और कटि,
भुज कर जानु पग प्यारी के निहारिये॥
कहूँ तम चन्द चांप खञ्जन कनक पुट,
पत्र, सुक, बिंव, मोती, चंपकली बारिये।
कंबु, निंबु, कूप, नदी, सैबाल, मृनाललता,
पल्लव कदलि, कञ्ज चेरे करि डारिये॥

शब्दार्थ—चिबुक—ठोड़ी। त्रौली—त्रिबली। बिंव—बिंवाफल। चेरे करि डारिए—निछावर करिए। कंबु—शंख। कदलि—केला।

३४—समाहित
दोहा

जँह कारज करतव्य कौ, साधन विधि बल होइ।
अकसमात ही देव कहि, कहौ समाहित सोइ॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—जहाँ कार्य का साधन विधिबल से अकस्मात होजाय वहाँ समाहित अलंकार होता है।

उदाहरण
सवैया

गुन गौरि कियो गुरु मान सु मैन, लला के हिये लहराइ उठ्यो।
मनुहारि के हारि सखी गुन औरंग, भौनहि ते भहराइ उठ्यो॥