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अलंकार


तब लों चहूँघाई घटा घहराइ कें, बिज्जु छटा छहराइ उठ्यो।
कवि देवजू भाग तें भामती कौ, भय ते हियरा हहराइ उठ्यो॥

शब्दार्थ—मनुहारि—ख़ुशामद, विनती। चहुधांई—चारों ओर। हियरा—हृदय।

३५—तुल्ययोगिता
दोहा

जहँ समकरि गुन दोष कै, कीजै बस्तु बखान।
स्तुतिन पदारथ कौ तहाँ, तुल्ययोगिता जान॥

शब्दार्थ—सरल है।

भावार्थ—जहाँ वस्तुओं के गुण दोषों का वर्णन समान रूप से किया जाय वहाँ तुल्ययोगिता अलंकार होता है।

उदाहरण
सवैया

एक तुहीं वृषभानसुता अरु, तीनि हैं वे जु समेत सची हैं।
औरन केतिक राजन के, कबिराजन की रसनायै मची हैं॥
देवी रमा कबि देव उमा ये, त्रिलोक मैं रूप को रासि मची हैं।
पै वर नारि महा सुकुमारि, ये चारि बिरश्च बिचारि रचीं हैं॥

शब्दार्थ—तुहीं—तूही। केतिक—कितनी ही। रमा—लक्ष्मी। रूप की रासि—सौंदर्य की खानि। बिरञ्च रची हैं—ब्रह्मा ने विचारपूर्वक बनाया है।