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भाव-विलास
प्रगट अरथ जहँ लेस करि, कीजे ताहि निगृढ़।
लेस कहत तासों सुकबि, जे बुधि बल आरूढ॥
शब्दार्थ-सरल है।
भावार्थ-जहाँ किसी वस्तु के प्रकट अर्थ को छिपा कर वर्णन किया जाय वहाँ लेस अलङ्कार होता है।
बाल बिलोकत हीं झलकी सी, गुपाल गरै जलबिन्द की मालै।
अपुस मै मुसक्यानी सखी, हरिदेव जू बाते बनाइ बिसालै॥
साँप ज्यों पौन गिलै उगिलै, बिपयो रबि ऊषम आनि उगालै।
जात घुस्यो घरही में घने, तपधीनु भयो तनुघाम के घालै॥
शब्दार्थ-बिसालै-बड़ी-बड़ी। गिलै-निगल जाय। उगिलै-बाहर निकाले।
भूत रु भावी अरथ कों, बर्त्तमान सु बखानु।
भाविक बस्तु गंभीर कों, सोई भाविक जानु॥
शब्दार्थ-सरल है।
भावार्थ-जहाँ भूत, और भविष्य को वर्त्तमान की भाँति वर्णन किया जाय वहाँ भाविक अलंकार होता है।