पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
३६
भाव-विलास

९—चित्त
दोहा


इष्ट वस्तु पायें बिना, एक आस चितु होइ।
स्वांस, ताप, वैवरण जँह, चिन्ता कहियतु सोइ॥

शब्दार्थ—इष्ट वस्तु—इच्छित वस्तु।

भावार्थ—अपनी इच्छित वस्तु को न पाने पर उसी की आशा में व्याकुल रहने को चिन्ता कहते है। इस चिन्ता मे श्वांस, ताप, विवरनता आदि लक्षण होते हैं।

उदाहरण
सवैया


जानति नाहि हरै हरि कौन के, ऐसी धौ कौन बधूमन भावै।
मोही सों रूठि के बैठि रहे, किधौं कोई कहूँ कछू सोध न पावै॥
वैसिय भाति भटू कबहूँ अब, क्योहूँ मिलै, कहूँ कोई मिलावै।
आँसुनि मोचति सोचति यों, सिगरौ दिन कामिनि काग उड़ावै॥

शब्दार्थ—सोध न पावै—खोज नहीं मिलती। आँसुनि मोचति—आँसू गिराती है। सिगरौ दिन—दिन भर। कामिनि काग उड़ावै—कौए उड़ाती रहती है (कोई आने वाला होता है तब स्त्रियाँ कौए को उसके आगमन का सूचक समझ उड़ाती हैं)

१०—मोह
दोहा


अद्भुत दरसन बेग भय, अति चिन्ता अति कोह।
जहाँ मूर्छा विस्मरन, लंभतादि कहु मोह॥