पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
४३
आंतर संचारी-भाव

 

१८—आवेग
दोहा

प्रिय अप्रिय देखें सुनें, गात पात से बेग।
होय अचानक भूरिभ्रम, सो बरनै आवेग॥

शब्दार्थ—अचानक—अकस्मात; यकायक।

भावार्थ—किसी प्रिय अथवा अप्रिय बात को देखने या सुनने से जो हृदय में घबराहट उत्पन्न होती है उसे आवेग कहते हैं। इसमें शरीर काँपने लगता है और भ्रमादि लक्षण प्रकट होते हैं।

उदाहरण
सवैया

देखन दौरीं सबैं बृजबाल, सु आये गुपाल सुने बृज भूपर।
टूटत हार हिये न सम्हारती, छूटत बारन किंकिन नूपुर॥
भार उरोज नितम्बन कौन सै, है कटिकौ लटिवौ द्दग दूपर।
देव सुदै पथ आई मनों, चढ़ि धाई मनोरथ के रथ ऊपर॥

शब्दार्थ—बृजभूपर—बृजमंडल में। न सम्हारतीं—नहीं संभालतीं। किंकिन—करधनी। नूपुर—बिछिया। दूपर—दोनों पर।

१९—गर्व
दोहा

बहु बल धन कुल रूपतें, सिरु उन्नतु अभिमान।
गिने न काहू आप सम, ताही गर्व बखान॥