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भाव-विलास

 

अलौकिक रस
उदाहरण पहला—(स्वापनिक)
सवैया

सोइ गई अभिलाषभरी तिय, सापने में निरखे नंदनन्दन।
देव कछू हँसि बात कही, पुलके सु हिये झलके जल के कन॥
जागि परी नवनूढ़ वधू ढिंग, दूढ़ति गूढ़ सनेहसनी घन।
सोच सकोच अगोचर तीय, त्रसे, बिलसै, बिहसै, मनही मन॥

शब्दार्थ—अभिलाष भरी—इच्छाओं को लिये हुए। निरखे—देखे। पुलके सुहिये—हृदय पुलकायमान होगया। झलके.....कन—पसीने की बूंदें दिखलायी पड़ने लगी। नवनूढ़—नवविवाहिता। ढिगढूढ़त—पास में ढूंढ़ती है। गूढ़ सनेह सनी—प्रेम में सराबोर। सकोच—संकोच। अगोचर—जो दिखलायी न पड़े। त्रसे—डरे।

उदाहरण दूसरा—(मानोरथिक)
सवैया

कालिदी कूल भयो अनुकूल, कहूं घरबार घिरो नहिं घेरौ।
मंजुल बंजुल साल रसाल, तमालनि के बन लेत बसेरौ॥
केलि करे री कदम्बनि बीच, जु कानन कुञ्ज कुटीन में टेरौ।
मोहनलाल की मूरति के सँग, डोलत माई मनोरथ मेरौ॥

शब्दार्थ—कालिदी—यमुना। डोलत—घूमता फिरता है। मनोरथ—अभिलाषा।