(ख) पूर्वानुराग—(श्रवण)
उदाहरण
सवैया
सुन्दरता सुनि देव ढुँहू के, रहे गुन सो गुहि के मनमोती।
लागे हैं देखिबे कों दिन रात, गिने गुरुहू नहिं सौ किन गोती॥
देव दुहूँ की दहै विनु देखे सु, देखें दसा निसि सोवत कोती।
होती कहा हरि राधिका सो, कहूँ नैकौ दई पहिचान जो होती॥
शब्दार्थ—सौकिन—गोती—सगे संबंधी।होती......पहिचान जो होती—यदि कही राधिका और श्रीकृष्ण में पहलेसे जान पहचान होती तो न जानें क्या होता।
(ग) पूर्वानुराग—(श्रीकृष्ण)
सवैया
बाल लतान मैं बाल कौ बोल, सुन्यों कहुँ संग सखीन के टेरत।
काहू कही हरि राधा यही, दुरि देवजू देखी इतै मुख फेरत॥
है तब तें पल एक नहीं कल, लाखनि लों अभिलाखनि घेरत।
पाही निकुंजहि नन्दकुमार, घरीक मैं बार हजारक हेरत॥
शब्दार्थ—दुरि छिपकर। है......कल—तब से एक घड़ी के लिए भी चैन नहीं। लाखनि....घेरत—लाखों अभिलाषाएँ मन में आती हैं। घरीक मैं.....हजारक हेरत—एक घड़ी में हजार बार देखते हैं।