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३०. अन्नाहार-सम्बन्धी प्रचार-कार्य'

दक्षिण आफ्रिकामें वनस्पति-आहार उत्पन्न करनेवाले बागवानोंके लिए बहुत अच्छा अवसर है। यहाँकी जमीन तो बहुत उपजाऊ है, मगर बागवानोंकी बहुत उपेक्षा की गई है।

मुझे यह बताने में खुशी है कि मैंने अपनी घर-मालकिनको, जो एक अंग्रेज महिला हैं, स्वयं अन्नाहारी बनने और अपने बच्चोंका पोषण भी अन्नाहारपर ही करनेके लिए राजी कर लिया है। भय इतना ही है कि वे टिकी नहीं रहेंगी। यहाँ ठीक तरहके शाक नहीं मिलते। जो भी मिलते हैं, बहुत महँगे हैं। फल भी बहुत महँगे हैं। यही हाल दूधका है। इसलिए उन महिलाको विविध प्रकारकी चीजें देना बहुत कठिन होता है। अगर यह ज्यादा खर्चीला मालूम हुआ तो वे इसे जरूर छोड़ देंगी।

प्राणयुक्त आहारपर श्री हिल्सका लेख मैंने बहुत दिलचस्पीसे पढ़ा। मैं शीघ्र ही फिरसे उसका प्रयोग करनेका इरादा कर रहा हूँ। आपको याद होगा कि मैंने बम्बईमें उसका प्रयोग किया था। परन्तु वह इतने लम्बे वक्ततक नहीं चला था कि मैं उसपर कोई अभिप्राय दे सकूँ।

कृपया सब मित्रोंको मेरी याद दिलाएँ।

[अंग्रेजीसे ]

वेजिटेरियन, ३०-९-१८९३

३१. लन्दन-संदर्शिका

[१८९३-९४]

प्रस्तावना

सस्ते प्रकाशनके इस जमाने में लेखकोंकी संख्या निरन्तर बढ़ रही है और स्वभावतः उनका मान पहले जितना नहीं रहा है। इसलिए मैं पाठकोंसे इतना तो तत्काल कहे ही दे रहा हूँ कि इस छोटी-सी पुस्तिकाको लिखकर लेखक बननेका मेरा कोई इरादा नहीं है। मुझे लगता है कि इसे लिखकर तो मैं सिर्फ एक ऐसी कमी पूरी कर रहा हूँ जिसका बहुत दिनोंसे अहसास हो रहा था। मार्ग-दर्शनकी

१. यह वास्तवमें गांधीजीका प्रिटोरियासे लिखा एक निजी पत्र है।

२. इस पुस्तिकाकी सही लेखन-तिथि मालूम नहीं है प्यारेलालजीका कथन है : “ प्रिटोरियामें अपेक्षा-कृत ज्यादा समय मिलनेसे गांधीजी उन दो अधूरे कामोंको, जिन्हें उन्होंने भारतमें शुरू किया था, फिरसे हाथमें ले पाये। इन कामों में से एक था एक छोटी पुस्तिका गाइड टु लन्दन जिसमें उन्होंने उन अनेक