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३२. प्राणयुक्त आहारका एक प्रयोग

इस प्रयोगका, अगर इसे प्रयोग कहा जा सके तो, वर्णन करनेके पहले मैं यह बता दूं कि बम्बईमें भी मैंने एक सप्ताहतक प्राणयुक्त आहारका परीक्षण किया था। मैंने उसे सिर्फ इस कारणसे छोड़ा था कि उस समय मुझे अनेक मित्रोंका आतिथ्य करना पड़ता था। कुछ सामाजिक बातें भी थीं, जिनका खयाल करना जरूरी था। प्राणयुक्त आहार उस समय मुझे बहुत अनुकूल पड़ा था। अगर मैं उसे जारी रख सका होता तो बहुत संभव था कि वह आगे भी अनुकूल पड़ता।

जिस समय मैं यह दूसरा प्रयोग कर रहा था, मैं उसके बारे में टिप्पणियाँ लिखता जाता था। उन्हें मैं यहाँ देता

अगस्त २२, १८९३--प्राणयुक्त आहारका प्रयोग शुरू किया। पिछले दो दिनोंसे मुझे सर्दी थी। कानोंमें भी थोड़ा-सा सर्दीका असर था। भोजनके दो चम्मच भर गेहूँ, एक चम्मच मटर, एक चम्मच चावल, दो चम्मच किशमिश, करीब बीस छोटे कवची मेवे, दो संतरे और एक प्याला कोकोका नाश्ता किया। अनाजको रात-भर भिगोकर रखा था। भोजन ४५ मिनटमें समाप्त किया। सुबह बहुत स्फूति रही, शामको सुस्ती आ गई। सिरमें थोड़ा-सा दर्द भी हुआ। शामको रोटी, शाक आदिका साधारण भोजन किया।

अगस्त २३--भूख मालूम होती है। कल शामको कुछ मटर खाये थे। उसके कारण नींद अच्छी नहीं आई। सुबह जागनेपर मुंहका स्वाद खराब था। कलके ही जैसा नाश्ता और ब्यालू की। यद्यपि बदलीका उदासी भरा दिन था और कुछ पानी भी बरस गया था, मुझे जुकाम या सिर दर्द नहीं हुआ। बेकरके साथ चाय पी थी। यह बिलकुल माफिक नहीं पड़ी। पेटमें दर्द मालूम हुआ।

अगस्त २४--सुबह उठा तो पेट भारी था और बेचैनी महसूस होती थी। वही नाश्ता किया। सिर्फ मटर एक चम्मचसे आधा चम्मच घटा दिये थे। ब्यालू साधारण । स्वस्थ नहीं रहा। सारे दिन बदहजमी महसूस करता रहा।


१.प्राणयुक्त आहारके सिद्धान्तका प्रचार पहले-पहल भन्नाहारी मण्डल के अध्यक्ष श्री ए०एफ० हिल्सने फरवरी ४, १८८९ को मण्डलकी पहली त्रैमासिक बैठकमें किया था। द फस्ट डाएट ऑफ पेराडाइज नामक अपनी पुस्तक में श्री हिल्सने वनस्पति-आहारके सम्बन्धमें काफी विस्तारके साथ एक विचारणीय सिद्धान्तका प्रतिपादन किया था। उन्होंने सूर्यको किरणों और प्राणशक्ति तथा शारीरिक स्फूर्तिका सम्बन्ध बताते हुए कहा था कि सूर्यको किरणोंसे उत्पन्न ये गुण फल, अनाज, गिरीदार मेवों और दालों में पाये जाते हैं। अलबत्ता, उन्हें भागमें पकाकर नहीं बल्कि वनपक्व हालतमें ही खाना चाहिए। “प्राणयुक्त आहारका एक प्रयोग", ३०-३-१८८४ भी देखिए ।

२. श्री ए.डब्ल्यू.बेकर, अटर्नी तथा धर्मोपदेशक, जिन्होंने गाधोजीके साथ ईसाई धर्मपर विचार-विमर्श किया था और उनका प्रिटोरियाके ईसाई मित्रोंसे परिचय कराया था।