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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जितने विस्तारसे हो सकता है उतने विस्तारके साथ श्रीमानके सामने पेश कर सकें। इसका हमें खेद है।

महानुभाव, हमें ताने दिये गये हैं कि हम इतनी देरसे जागे, जब कि कुछ भी कर सकना प्रायः असम्भव हो गया है। आपको विशवास दिलानेके लिए कि हम सदनके सामने सम्भवतः इससे जल्द जा ही नहीं सकते थे, केवल इतना ही जरूरी है कि हम आपको अपनी खास परिस्थितियाँ बता दें। हमारे समाजके जो दो प्रमुख सदस्य हैं, वे जरूरी कामसे उपनिवेशके बाहर गये हुए थे। वे उपनिवेशके लोगोंके साथ किसी भी प्रकारका पत्र-व्यवहार करनेमें असमर्थ थे। इधर, हमारा अंग्रेजी भाषाका ज्ञान बहुत कच्चा है। इसलिए हम महत्त्वपूर्ण विषयोंका यथेष्ट परिचय नहीं रख सकते।

श्रीमानके प्रति अत्यन्त आदरके साथ हम बताना चाहते हैं कि ऐंग्लो-सैक्सन और भारतीय--दोनों जातियोंका उदभव एक ही मूलवंशसे हुआ है। विधेयकके दूसरे वाचनके समय श्रीमानने जो धाराप्रवाह भाषण किया उसे हमने पूरे ध्यानसे पढ़ा है। हमने यह जाननेके लिए बहुत परिश्रम किया कि आपने दोनों जातियोंके मूलवंशोंके अन्तरपर जो विचार व्यक्त किये है उनका समर्थन किसी अधिकारी लेखकने किया है या नहीं। परन्तु मैक्समूलर, मॉरिस, ग्रीन और अनेकानेक दूसरे लेखक एक स्वरसे बहुत स्पष्ट रूपमें यही बताते जान पड़ते है कि दोनों जातियोंका उद्भव एक ही आर्य वंशसे या, जैसा कि बहुत-से लोग कहते हैं, इंडो-आर्यन वंशसे हुआ है। फिर भी, जो राष्ट्र हमें स्वीकार करनेके लिए तैयार न हो हमें उसके बन्धु-राष्ट्र के सदस्योंके नाते जबरन् उसके गले पड़ जानेकी इच्छा जरा भी नहीं है। परन्तु अगर हम उन बातोंको वास्तविक रूपमें प्रस्तुत करें, जिनके कथित अभावको हमें मताधिकारके अयोग्य घोषित करनेके लिए दलीलके रूपमें पेश किया गया है, तो आशा है हमें क्षमा किया जायेगा।

इसके अलावा बताया जाता है, श्रीमान्ने यहाँतक कहा है कि भारतीयोंसेनमताधिकारका प्रयोग करने की अपेक्षा करना क्रूरता होगी। नम्र निवेदन है कि हमारा प्रार्थनापत्र इसका पर्याप्त उत्तर है।

आपका भाषण हमें अपने दृष्टिकोणसे कितना भी अन्यायपूर्ण क्यों न मालूम हुआ हो, हमें यह जानकर कम सन्तोष नहीं हुआ कि वह न्याय, नीति और, इनके अलावा, ईसाइयतकी भावनाओंसे ओतप्रोत था। जबतक इस भूमिके श्रेष्ठ पुरुषोंमेंनयह भावना दिखलाई पड़ती है, तबतक हम प्रत्येक मामले में न्याय किये जानेकी बाबत हताश नहीं होंगे।

इसीलिए हमने पूरे विश्वासके साथ आपके सामने आनेका साहस किया है। हम मानते हैं कि हमारे नम्र प्रार्थनापत्र में जो नई हकीकतें स्पष्ट की गई है, उनकी रोशनीमें उपर्युक्त भावनाओंके प्रदर्शित किये जानेका परिणाम उपनिवेशवासी भारतीयों-के प्रति ठोस न्याय ही होगा।

हमारा विशवास है कि प्रार्थनापत्रमें की गई याचना बहुत विनम्र है। अगर अखबारोंके समाचार विशवास-योग्य हों तो श्रीमानने स्वीकार करनेकी कृपा की थी कि