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३८. परिपत्र : संसद सदस्योंके नाम[१]

डर्बन
१ जुलाई, १८९४

सेवामें . . . .
महोदय,

हम नीचे हस्ताक्षर करनेवालोंने विधानपरिषद और विधानसभा दोनों के माननीय सदस्योंके पास इस पत्रकी नकलें रजिस्टर्ड डाकसे भेजी हैं और उनसे साथके प्रश्नोंका उत्तर देने का अनुरोध किया है। यदि आप संलग्न पत्र में उत्तरके कालम भरकर और आप जो ठीक समझें वह मन्तव्य दर्ज करके अपने हस्ताक्षरोंके साथ उसे प्रथम हस्ताक्षरकर्ता के पास ऊपरके पतेपर वापस भेज दें तो हम अत्यन्त आभारी होंगे।

आपके . . .
मो° क° गांधी
तथा चार अन्य

प्रश्न उत्तर विशेष
(१) क्या आप शुद्ध अन्तःकरणसे कहते हैं कि मताधिकार कानून संशोधन विधेयक बिलकुल न्याययुक्त है, जिसमें किसी संशोधन या परिवर्तनकी जरूरत नहीं है? हाँ या नहीं
(२) क्या आप इसे न्याययुक्त समझते हैं कि जो भारतीय किसी कारण से अपने नाम मतदाता सूची में नहीं लिखा सके उन्हें हमेशा के लिए संसदीय चुनावोंमें मत देने से रोक दिया जाना चाहिए — भले वे कितने ही योग्य क्यों न हों और उपनिवेशमें उनका कैसा भी हित निविष्ट क्यों न हो?
(३) क्या आप सचमुच विश्वास करते हैं कि कोई भी भारतीय उपनिवेशका पूरा नागरिक बननेकी या मत देनेकी पर्याप्त योग्यता कभी भी अर्जित नहीं कर सकता?
(४) क्या आप इसे न्याय समझते हैं कि किसी आदमीको सिर्फ इसलिए मतदाता न बनने दिया जाये कि वह एशियाई वंशका है?
 
  1. इस परिपत्र और प्रश्नावलीका उल्लेख "प्रार्थनापत्र : लॉर्ड रिपनको", १४-७-१८९४ से पूर्वके आठवें अनुच्छेद में किया गया है।