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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। इसलिए उनके अन्दर वह शक्ति छिपी हुई है जिससे, मौका पानेपर, वे अपने अधिक भाग्यवान भारतवासी भाइयोंके समान योग्य बन सकते हैं। यह ठीक वैसा ही है, जैसे कि लन्दनके ईस्ट एंडमें रहनेवाले, अज्ञान और दुर्गुणोंके गहरे गर्तमें डूबे हुए व्यक्ति में भी स्वतन्त्र इंग्लैंडका प्रधानमन्त्री बन जानेकी शक्ति छिपी होती है।

लॉर्ड रिपनको जो मताधिकार सम्बन्धी प्रार्थनापत्र भेजा गया है उसका आपने ऐसा अर्थ लगाया है, जिसको उसके द्वारा व्यक्त करनेका कभी इरादा ही नहीं था। भारतीयोंको इसका कोई अफसोस नहीं है कि योग्य वतनी लोगोंको मताधिकार दिया गया है। उन्हें तो अफसोस तब होता जब इसका उलटा होता। किन्तु उनका यह दावा अवश्य है कि उन्हें भी, अगर वे योग्य हों तो, वह अधिकार मिलना चाहिए। आप तो बुद्धिमत्ता इसमें समझते हैं कि वह मूल्यवान विशेषाधिकार, भारतीय या वतनी, किसीको भी किसी अवस्थामें न दिया जाये, क्योंकि उनकी चमड़ी काली है। आप केवल बाहरी रूप-रंग देखते हैं। यदि चमड़ी गोरी है, तो आपको कोई परवाह नहीं कि उसके अन्दर विष छिपा हुआ है या अमृत। आपको तो पब्लिकनके[१] सच्चे प्रायश्चित्तसे फैरिसीकी[१] — क्योंकि वह फैरिसी है — कोरी मौखिक प्रार्थना ज्यादा स्वीकार्य है। और मेरा खयाल है कि इसीको आप ईसाइयत कहेंगे। आप भले ही कहें, मगर यह ईसाकी ईसाइयत तो नहीं है।

अपनी इस तरहकी रायके बावजूद आप, जो उपनिवेशके एक सम्मानित पत्रके सम्पादक हैं, 'टाइम्स ऑफ इंडिया' पर झूठका आरोप लगाते हैं। अभियोग लगा देना एक बात है, मगर उसे साबित करना दूसरी ही बात है।

आपने अपने लेखके अन्तमें यह कहा है कि नागरिक जिस किसी भी अधिकार-की कामना कर सकते हैं, वे सब "रामीसामी " को दिये जा सकते हैं; केवल राजनीतिक सत्ता" नहीं दी जा सकती। क्या आपके अग्रलेखका शीर्षक और उसकी विचारधारा, दोनों उपर्युक्त मतके अनुकूल हैं? या सुसंगत रहना ईसाइयत और अंग्रेजियतके अनुकूल नहीं है? प्रमुने कहा था — "छोटे बच्चोंको मेरे पास आने दो!" इस उपनिवेशमें रहनेवाले उनके शिष्य(?) तो "छोटे" के बाद "गोरे" जोड़कर इसमें सुधार कर लेना चाहेंगे। मुझे मालूम हुआ है कि डर्बनके मेयरने बच्चोंका जो मेला आयोजित किया था, उसके जुलूसमें एक भी अश्वेत बच्चा दिखलाई नहीं पड़ता था। क्या यह अश्वेत माता-पितासे पैदा होनेके पापका दण्ड था? क्या यह उस विशेष प्रकारकी नागरिकताकी तैयारी है, जो आप अपने द्वेषभाजन "रामीसामी" को देनेवाले हैं?

अगर प्रभु ईसा हमारे बीच आयें तो क्या वे हममें से बहुतोंके बारेमें यह नहीं कहेंगे कि "मैं तुम्हें पहचानता नहीं?" महोदय, क्या मैं एक सुझाव देनेकी धृष्टता कर सकता हूँ? क्या आप 'नया करार' (न्यू टेस्टामेंट) फिरसे पढ़ेंगे? क्या आप उपनिवेशके अश्वेत निवासियोंके बारेमें अपने लेखपर विचार करेंगे? और