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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सारे संसार में मूल तत्त्वोंको छोड़कर और किसी वस्तुका अध्ययन इतना लाभ-दायक और इतना उन्नयनकारी नहीं है, जितना कि उपनिषदोंका। उससे मुझे जीवन में समाधान मिला है और मृत्युमें भी समाधान मिलेगा।

विज्ञानके विषययें सर विलियमका कथन है:

पश्चिमके वैयाकरण जब भाषा-विज्ञानका विवेचन आकस्मिक समानताओंके आधारपर कर रहे थे, उस समय भारतमें उसे मूलभूत सिद्धान्तोंका रूप मिल चुका था। आधुनिक भाषा-विज्ञानका आरम्भ तो तब हुआ जब यूरोपीय विद्वानोंने संस्कृतका अध्ययन किया। . . . पाणिनीके व्याकरणका स्थान संसारके व्याकरणोंमें सर्वोच्च है। . . . सम्पूर्ण संस्कृत भाषाको उसके द्वारा एक तर्कसंगत और व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत कर दिया गया है। और वह मानवीय आविष्कार और उद्योगकी एक शानदार सिद्धिके रूपमें देदीप्यमान है।

सर एच° एस° मेन अपने रीड-व्याख्यानमें, जो 'विलेज कम्युनिटीज 'के नवीनतम संस्करणमें प्रकाशित हुआ है, विज्ञानके उसी अंगपर प्रकाश डालते हुए कहते हैं:

भारतने दुनियाको तुलनात्मक भाषाशास्त्र दिया है और ऐसी पौराणिक कथा-सामग्री भी प्रदान की है, जिससे पुराणोंका तुलनात्मक अध्ययन सम्भव हुआ है। वह अभी एक और नया शास्त्र दे सकता है। उसका महत्त्व भाषा-शास्त्र और लोक कथा-शास्त्रसे कम न होगा। मुझे उसको तुलनात्मक न्यायशास्त्र कहने में संकोच है, क्योंकि यदि कभी उसका आविर्भाव हुआ तो उसका क्षेत्र कानूनके क्षेत्रसे बहुत विस्तृत होगा। कारण यह है कि भारतमें एक ऐसी आर्य भाषा मौजूद है (या, अधिक सही कहा जाये तो, मौजूद रही है), जो उसी सर्वसामान्य मातृभाषासे निकली अन्य सब भाषाओंसे पुरानी है। उसके पास प्राकृतिक पदार्थोंके ऐसे अनेकानेक नाम भी हैं, जो काल्पनिक व्यक्तियोंके अर्थ में उतने रूढ़ नहीं हुए, जितने कि अन्य देशोंमें। इसके अलावा, असंख्य आर्य संस्थाएँ, आर्य प्रथाएँ, आर्य कानून, आर्य विचार और आर्य विश्वास उसके पास सुरक्षित हैं। उसकी सीमाके बाहर इनमेंसे भी जो वस्तुएँ अब भी अवशिष्ट रह गई हैं, उन सबकी अपेक्षा ये विकास तथा वृद्धिकी अधिक प्राचीन अवस्थामें हैं।

भारतीय खगोलशास्त्र के बारेमें वही इतिहासकार कहता है:

ब्राह्मणों के खगोलशास्त्रकी कभी बहुत अधिक सराहना हुई है, कभी अनुचित तिरस्कार हुआ है। . . . कुछ बातों में ब्राह्मण यूनानी खगोलविज्ञानसे आगे बढ़ गये थे। उनकी कीर्ति सारे पश्चिममें फैली और उसे 'क्रॉनिकन पास्केल'[१] में
 
  1. १. ईसाइयोंकी पौराणिक पुस्तक, जिसमें आदमसे लेकर सन् ६२९ ई० तककी सृष्टि कथाका काल-क्रम दिया गया है। माना जाता है कि यह सातवीं शताब्दीमें लिखी गई थी।