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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


(३१) अगर इस खरीतेकी दृष्टिसे पंच-फैसला एशियाकी आदिम जातियोंपर लागू होना है, तो प्रश्न यह उठता है कि यदि तमाम एशियाइयोंको ही आदिम जातिके लोग न मान लिया जाये तो क्या ट्रान्सवालमें कोई भी एशियाई आदिम जातिके हैं? और, हमारा विश्वास है, सारेके-सारे एशियाइयोंको आदिम जातिके मान लेनेकी धृष्टता तो क्षणभरके लिए भी नहीं की जायेगी। इसलिए, निश्चय ही प्रार्थी आदिम जातिके लोगोंकी श्रेणीमें नहीं आयेंगे।

(३२) अगर भारतीयोंके प्रति सारे विरोधका मूल सफाई ही है, तब तो निम्नलिखित प्रतिबन्ध बिलकुल समझमें आने योग्य नहीं हैं :

(१) काफिरोंकी तरह भारतीय भी अचल सम्पत्ति के मालिक नहीं हो सकते।

(२) भारतीयोंके लिए अपने नाम पंजीकृत कराना अनिवार्य है, जिसका शुल्क ३ पौंड १० शिलिंग होगा।

(३) जबतक भारतीयोंके पास पंजीकरणके टिकट न हों तबतक गणराज्य में यात्रा करते समय उन्हें, देशी लोगोंके समान, परवाना दिखाना पड़ता है।

(४) रेलगाड़ियों में वे पहले या दूसरे दर्जे में यात्रा नहीं कर सकते। वे देशी लोगोंके साथ उसी डिब्बेमें ठूंस दिये जाते हैं।

(३३) इन तमाम अपमानोंका डंक तब और भी पीड़ाजनक हो उठता है, जब यह स्मरण आता है कि अनेक प्रार्थी डेलागोआ-बेमें बड़ी-बड़ी जायदादोंके मालिक हैं। वहाँ उनका इतना आदर है कि उन्हें रेलगाड़ीका तीसरे दर्जेका टिकट लेने ही नहीं दिया जाता। वहाँ यूरोपीय खुशीके साथ उनका स्वागत करते हैं। उन्हें परवाने नहीं रखने पड़ते। फिर, प्रार्थी पूछते हैं, ट्रान्सवालमें, उनके साथ भिन्न व्यवहार क्यों होना चाहिए? क्या उनकी सफाईकी आदतें ट्रान्सवालमें प्रवेश करते ही गन्दी हो जाती हैं? अकसर देखा जाता है कि वही यूरोपीय उसी भारतीयके साथ डेलागोआ-बे और ट्रान्सवालमें भिन्न व्यवहार करता है।

(३४) परवानेका कानून कितना त्रासदायक है, यह बतानेके लिए प्रार्थी इसके साथ श्री हाजी मुहम्मद हाजी दादाका हलफनामा नत्थी कर रहे हैं, जो स्वयंस्पष्ट है। (परिशिष्ट छ) हलफनामेके साथ एक पत्रकी नकल है। (परिशिष्ट ज) उससे मालूम हो जायेगा कि श्री हाजी मुहम्मद कौन हैं? दक्षिण आफ्रिकाके वे एक अग्रगण्य भारतीय हैं। प्रार्थियोंने सिर्फ उदाहरणके तौरपर और यह बतानेके लिए हलफनामा नत्थी किया है कि जब एक अग्रगण्य भारतीय अपमान और प्रत्यक्ष कठिनाइयाँ सहे बिना यात्रा नहीं कर सकता, तब दूसरे भारतीयोंका भाग्य क्या होगा। अगर जरूरी हो तो दुर्व्यवहारके ऐसे सैकड़ों मामलोंको पूरी-पूरी तरह साबित किया जा सकता है।

(३५) यह भी कहा गया है कि भारतीय परोपजीवी बनकर रहते हैं और खर्च कुछ नहीं करते। जहाँतक भारतीय मजदूरों और उनके बच्चोंका सम्बन्ध है, यह आरोप जरा भी ठहर नहीं सकता। उन्हें तो उनके प्रति सबसे ज्यादा मनोमालिन्य