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६८. प्रार्थनापत्र : लॉर्ड एलगिनको

[डर्बन
११ अगस्त, १८९५]

सेवामें

महामहिम परममाननीय लॉर्ड एलगिन
वाइसराय तथा सपरिषद गवर्नर जनरल भारत,
कलकत्ता

नीचे हस्ताक्षर करनेवाले नेटाल निवासी भारतीयोंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

प्रार्थी सम्राज्ञीके भारतीय प्रजाजन हैं और महानुभावका ध्यान अपने उस विनम्र प्रार्थनापत्रकी ओर आकर्षित करना चाहते हैं, जो उन्होंने भारतीय प्रवासी कानून संशोधन विधेयक के बारेमें सम्राज्ञी-सरकारको भेजा है। यह विधेयक हालमें ही नेटाल की विधानसभा और विधान परिषदने मंजूर किया है। इसका आंशिक आधार नेटालके गवर्नर महोदय के नाम महानुभावका तत्सम्बन्धी खरीता है, जिसकी एक नकल इसके साथ नत्थी की जा रही है।

उपर्युक्त प्रार्थनापत्रकी[१] ओर महानुभावका ध्यान आकर्षित करनेके अलावा, प्रार्थी विधेयकके सम्बन्धमें आदरके साथ निम्नलिखित निवेदन करना चाहते हैं।

प्रार्थियोंको यह देखकर खेद हुआ है कि महानुभाव मजदूरोंके अनिवार्य रूपसे पुनः प्रतिज्ञाबद्ध किये जाने अथवा अनिवार्य रूपसे भारत लौटा दिये जानेके सिद्धान्तको स्वीकार करनेके लिए रजामन्द हैं।

प्रार्थियोंको इस बातका भी खेद है कि जब नेटालके प्रतिनिधि[१] भारतके लिए रवाना हुए थे उस समय प्रार्थियोंने महानुभावको अपनी अर्जी नहीं भेजी। ऐसी कारें-वाईकी राह में किन कारणोंसे रुकावट पड़ी, इसकी चर्चा करना व्यर्थ होगा। फिर भी, यदि विधेयकने कानूनका रूप ले लिया तो उससे होनेवाला अन्याय बहुत बड़ा होगा। इसलिए प्रार्थियोंको आशा है कि उसे टालने में प्रार्थियोंके अर्जी न देनेको बाधक न माना जायेगा।

प्रार्थी अधिकतम आदरके साथ बतानेकी इजाजत लेते हैं कि यदि अनिवार्य वापसीकी शर्तका पालन न करनेपर फौजदारी कानूनका प्रयोग न किया जा सका तो इकरारनामे में इस तरहकी उपधाराका समावेश करना सरासर हानिकारक नहीं तो बिलकुल व्यर्थ जरूर होगा। क्योंकि, उससे इकरारी पक्षको अपना इकरार तोड़नेका प्रोत्साहन मिल सकता है, और कानून ऐसी अवहेलनाकी उपेक्षा करेगा। ऐसी उम्र