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प्रार्थनापत्र : जो° चेम्बरलेनको

निवेदन है कि उक्त प्रस्ताव द्वारा सन्धिको पूर्ण रूपमें स्वीकार करनेके बजाय उसमें संशोधन कर दिया गया है। यह एक कारण ही ऐसा है, जिससे प्राथियोंको निश्चित लगता है कि सम्राज्ञी-सरकार इस संशोधित पुष्टीकरणको मंजूर नहीं करेगी।

प्रस्तावके द्वारा भारतीयोंको अनावश्यक ही जिस अपमानका पात्र बनाया गया है, उसकी चर्चा प्रार्थी नहीं करेंगे।

ब्रिटिश प्रजाजनोंको सैनिक सेवासे मुक्त करनेका जो कारण बताया गया था, वह मुख्य रूपसे यह था कि ब्रिटिश प्रजाजनोंको पूरे नागरिक अधिकार प्राप्त नहीं हैं और गणराज्य में वे बाधाओं और निषेधोंके पात्र हैं; इसलिए उन्हें नागरिकोंके साथ सैनिक सेवा करनेके लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए। जिस समय हलचल हो रही थी, उस समय खुल्लमखुल्ला कहा गया था कि अगर विदेशियोंको नागरिक मान लिया जाये और मताधिकार दे दिया जाये तो वे हर्षके साथ मेलाबोख युद्धमें[१] मदद करेंगे।

इसलिए, अगर यूरोपीय या जैसा कि प्रस्तावमें कहा गया है, 'गोरे' ब्रिटिश प्रजाजनोंको उनकी राजनीतिक बाधाओं और निषेधोंके कारण यह मुक्ति दी जा रही है, तो सादर निवेदन है कि भारतीय ब्रिटिश प्रजाजन तो इसके और भी अधिक पात्र हैं । कारण, दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यमें भारतीय न सिर्फ राजनीतिक अधिकारोंसे वंचित हैं, बल्कि उन्हें माल असबाबसे ज्यादा कुछ समझा नहीं जाता । प्रस्ताव इस वस्तुस्थितिका एक और संकेत है।

अन्तमें, निवेदन है कि सारे दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंको निरन्तर उत्पीड़ित किया जा रहा है । उपनिवेश या स्वतन्त्र राज्य ( यहाँतक कि, बलावायो व अन्य नये प्रदेश भी ) इससे मुक्त नहीं हैं। भारतीयोंपर पहले ही आम तौरपर भारी प्रतिबन्ध लदे हुए हैं और प्रार्थी तथा उनके देशभाई सम्राज्ञी सरकारके हस्तक्षेप द्वारा उन्हें दूर करानेके प्रयत्न कर ही रहे हैं । इन सब दृष्टियोंसे हम हार्दिक प्रार्थना और दृढ़ आशा करते हैं कि सम्राज्ञीकी सरकार दक्षिण आफ्रिकी सरकारके भारतीयोंकी स्वतन्त्रता पर और भी अधिक प्रतिबन्ध लगानेके इस नये प्रयत्नको बरदाश्त नहीं करेगी।

और न्याय तथा दयाके इस कार्यके लिए प्रार्थी, कर्तव्य समझकर, सदा दुआ करेंगे, आदि।[२]

एम° सी° कमवद्दीन

अब्दुल गनी

मुहम्मद इस्माइल

आदि

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स, सं° ४१७, खण्ड १५२
 
  1. ट्रान्सवालमें सन् १८९४ के दौरान मेलाबोख जातिके विरुद्ध हॉलैंड द्वारा छेड़ा गया युद्ध।
  2. 'कमांडो मेमोरियल' के नामसे प्रसिद्ध, पद प्रार्थनापत्र दादाभाई नौरौजी द्वारा उपनिवेश सचिवको भेजा गया था। कॉमन्स सभा में भावनगरी द्वारा पूछे गये एक प्रश्नके उत्तर में चेम्बरकेनने १४ फरवरी, १८९६ को कहा था कि कि "रंग-मेद लागू करनेको रोकनेके लिए कदम उठाये जा चुके हैं"।