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भारतीयोंका मताधिकार


कप्तान बेयर्डको चितरालके किलेमें ले जानेवाली टुकड़ीके साथ काम किया था। सच तो यह है कि भारतीय योग्य सह-प्रजाजन माने जानेका अधिकार अनेक तरीकोंसे अर्जित कर रहे हैं। समर भूमि सदा ही विभिन्न जातियोंके बीच सम्मानपूर्ण समानता स्थापित करनेका सरल साधन रही है; परन्तु भारतीय तो इससे कहीं अधिक मन्द और कठिन तरीकोंसे, अर्थात् नागरिकों की हैसियत से समुचित आचरणके द्वारा भी हमारा सम्मान प्राप्त करने का अपना अधिकार सिद्ध कर रहे हैं। तीन वर्ष पूर्व आंशिक निर्वाचनके आधारपर भारतीय विधान परिषदोंके विस्तारका जो प्रयोग किया गया था, उससे बड़ा प्रयोग अधीन राज्योंके वैधानिक शासन में पहले कभी नहीं हुआ था। (अक्षर-भेद मैंने किया है)। बंगालमें वह प्रयोग जितना शंकाजनक मालूम होता था उतना भारत के किसी दूसरे भाग में नहीं। बंगालके लेफ्टिनेंट गवर्नरके क्षेत्रको आबादी मद्रास और बम्बई प्रदेशोंकी सम्मिलित आबादीके बराबर थी। शासन की दृष्टिसे उसकी व्यवस्था करना भी बहुत कठिन था।
सर चार्ल्स इलियटने लॉर्ड सैलिसबरीके कानून के अधीन गठित बृहत्तर विधान मण्डल से इस उलझनपूर्ण कानून (बंगाल सैनीटरी ड्रेनेज एक्ट) को स्वीकार करानेमें न केवल गुटबंदी पर आधारित विरोधके अभावकी, बल्कि मूल्यवान सक्रिय सहायता प्राप्त होनेकी भी खुले दिलसे साक्षी दी है। अनेक चर्चाएँ बहुत मददगार रहीं हैं। और जहाँतक बंगालका उस प्रान्तका सम्बन्ध है, जहाँ निर्वाचन-पद्धति सबसे अधिक कठिनाइयोंसे भरी मालूम होती थी, वहाँ भी एक कड़ी कसौटीके बाद यह प्रयोग सफल सिद्ध हुआ है। (अक्षर-भेद मैंने किया है।)

दूसरी आपत्ति यह है कि दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीय सबसे निचले दर्जे के भारतीयों में से हैं। यह कथन सही हो नहीं सकता। व्यापारी समाजके बारेमें तो सही है ही नहीं, यदि सारे-के-सारे गिरमिटिया भारतीयोंके बारेमें कहा जाये तो भी यह सही नहीं है। गिरमिटिया भारतीयों में से कुछ तो भारतकी सबसे ऊँची जातियोंके लोग हैं। बेशक वे सभी बहुत गरीब हैं। उनमें से कुछ भारतमें आवारा थे। बहुत-से लोग सबसे निचले दर्जेके भी हैं। परन्तु मैं, किसीको चोट पहुँचाने की इच्छा के बिना, कहनेकी इजाजत लूंगा कि अगर नेटालके भारतीय उच्चतम श्रेणीके नहीं हैं तो यूरोपीय भी तो वैसे नहीं हैं। मेरा निवेदन है कि इस बातको अनुचित महत्त्व दे दिया गया है। अगर भारतीय लोग आदर्श भारतीय नहीं हैं तो सरकारका कर्तव्य है कि वह उन्हें आदर्श बनाये । और अगर पाठक जानना चाहते हों कि आदर्श भारतीय कैसे होते हैं तो मैं उनसे प्रार्थना करूँगा कि वे मेरी 'खुली चिट्ठी' पढ़ें। उसमें