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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


बेशक, इस तालिकाको पूरा-पूरा सही बिलकुल नहीं कहा जा सकता। फिर भी मेरा खयाल है कि हमारी मौजूदा चर्चाके लिए यह काफी सही है। इस तरह, जहाँतक इन अंकोंका दायरा है, गिरमिटिया बनकर आनेवाले भारतीयोंको मतदाता-सूचीमें शामिल होनेके लिए धनकी पर्याप्त योग्यता कमाने में १५ वर्ष या इससे ज्यादा का समय लगता है। और अगर गिरमिट मुक्त भारतीयोंकी संख्या छोड़ दी जाये तो यह तो कोई नहीं कह सकता कि केवल व्यापारियोंकी आबादी कभी मी मतदाता-सूचीपर छा सकती है। इसके अलावा, इन ३५ गिरमिट मुक्त भारतीयों में से अधिकतर व्यापारियोंके दर्जेपर चढ़ गये हैं। जो लोग शुरू-शुरू में अपने खर्चसे आये थे, उनकी भारी बहुसंख्याको मतदाता सूची में शामिल होने में लम्बा समय लगा है। जिन ४६की शिनाख्त मैं नहीं करा सका, उनमें बहुत-से अपने नामोंसे व्यापारी वर्गके मालूम होते हैं। उपनिवेश में यहीं के जन्मे बहुत-से भारतीय हैं। वे शिक्षित भी हैं, फिर भी मतदाता सूची में सिर्फ ९ के नाम दर्ज हैं। इससे मालूम होगा कि वे इतने गरीब हैं कि उन्हें सम्पत्तिकी बिनापर मिलनेवाला मताधिकार नहीं मिला। इसलिए, समग्र रूपमें ऐसा मालूम होगा कि मौजूदा सूची के आधारपर यह डर काल्पनिक है कि भारतीयोंके मत खतरनाक अनुपात तक पहुँच जायेंगे। २०५ में से ४० या तो मर चुके हैं, या उपनिवेश छोड़कर चले गये हैं।

निम्नलिखित तालिकामें भारतीय मतदाताओंकी सूचीका धंधेके अनुसार विश्लेषण किया गया है :

दुकानदार (व्यापारी वर्ग) … … … ९२
व्यापारी … … … ३२
सुनार … … …
जौहरी … … …
हलवाई … … …
फल बेचनेवाले … … …
छोटे व्यापारी … … … ११
टीनसाज … … …
तम्बाकूके व्यापारी … … …
भोजनालय चालक … … …
 
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मुहर्रिर और सहायक

मुहर्रिर … … … २१
मुनीम … … …
हिसाब-लेखक … … …
विक्रेता … … …