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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
कहा जाता है कि काफिर लोगोंको ६-७ बरस पहलेको अपेक्षा अब २५-३० फीसदी कम भावों पर अरबोंसे माल मिल जाता है।
कुछ लोग एशिवाई या 'अरब' व्यापारियोंपर जो प्रतिबन्ध लगाने के इच्छुक हैं, उनपर विस्तार के साथ विचार करना आयोगके कार्यक्षेत्रके बाहर है। अतः हम व्यापक निरीक्षण के आधारपर अपना यह दृढ़ अभिप्राय अंकित करके ही सन्तोष मानते हैं कि इन व्यापारियोंका यहाँ रहना सारे उपनिवेशके लिए हितकारी हुआ है। और उनके खिलाफ कानून बनाना अगर अन्यायपूर्ण न हुआ, तो भी अबुद्धिमत्तापूर्ण तो होगा ही!' (अक्षरोंमें फर्क मैंने किया है।)
८. . . . उनमें लगभग सभी मुसलमान हैं। शराब या तो वे पीते ही नहीं, या मर्यादाके साथ पीते हैं। वे स्वभावसे कमखर्च और कानून को माननेवाले हैं। आयोग के सामने गवाही देनेवाले ७२ यूरोपीय गवाहोंमें से उपनिवेश में भारतीयोंकी उपस्थिति के परिणामों की चर्चा करनेवाले प्रत्येकने कहा है कि उपनिवेशकी भलाई के लिए वे अनिवार्य हैं।

मैंने जरा विस्तृत उद्धरण दिये हैं। इससे मेरा यह तर्क करनेका इरादा नहीं है कि भारतीयोंको मताधिकार दिया जाये (वह तो उन्हें प्राप्त ही है)। इसका मंशा इस आरोपका कि वे जबरन उपनिवेश में घुस आये हैं, और इस वक्तव्यका कि उपनिवेश की समृद्धिसे उनका कोई सम्बन्ध नहीं है, खण्डन करना है। हाथ कंगनको आरसी क्या? सबसे अच्छा प्रमाण तो यह है कि भारतीयोंके बारेमें कुछ भी क्यों न कहा जा रहा हो, उनकी माँग फिर भी की जाती है। संरक्षकका विभाग भारतीय मजदूरोंकी माँग पूरी करने में समर्थ नहीं हो रहा है।

१८९५की वार्षिक रिपोर्टके पृष्ठ ५ पर संरक्षकने कहा है :

गत वर्ष जितने आदमियोंकी माँग की गई थी, उनमें से, सालके आखिर में, १,३३० आदमी देनको बच गये थे। १८९५ में इस संख्या के अलावा २,७६० आदमियोंकी माँग और की गई। इस प्रकार कुल संख्या ४,०९० हो गई। इनमें से रिपोर्ट के वर्ष में २,०३२ आदमी आये (१,०४९ मद्रास से और ९८३ कलकत्ते से।) इस तरह पिछले वर्षकी माँग पूरी करनेके लिए २,०५८ (जिनमें उन १२ आदमियोंको कम कर दीजिए, जिनकी माँग रद हो गई) आदमी आने बाकी रहे।

अगर भारतीय सचमुच ही उपनिवेशको हानि पहुँचानेवाले हैं, तो सबसे अच्छा और सबसे न्यायपूर्ण तरीका यह होगा कि भविष्य में भारतीय मजदूरोंको लाना बन्द कर दिया जाये। इससे, उचित समय आनेपर, वर्तमान भारतीय आबादी भी उपनिवेश को ज्यादा कष्ट पहुँचाना बन्द कर देगी। जिन हालतोंका मतलब गुलामी होता हो उनमें उन्हें लाना न्यायसंगत नहीं है।