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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अबतक पालन किया गया है उसे आगे जारी रखना सही और योग्य है? अंग्रेजोंकी हैसियत से आपका कर्तव्य दोनों समाजों में फूट डालना नहीं, उन्हें मिलाकर एक करना ही हो सकता है।

भारतीयों में अनेक दोष हैं। दोनों समाजोंके बीच वर्तमान असन्तोषजनक भावनाओं की जिम्मेदारी कुछ हदतक निस्सन्देह स्वयं उनपर ही है। मेरा उद्देश्य आपको यह विश्वास कराना है कि सारा का सारा दोष एक ही पक्षका नहीं है।

मैंने अक्सर अखबारोंमें पढ़ा है और सुना है कि भारतीयोंके लिए शिकायतकी कोई बात ही नहीं है। मेरा निवेदन है कि न तो आप और न यहाँके भारतीय ही निष्पक्ष निर्णय करनेमें समर्थ हैं। इसलिए मैं आपका ध्यान बिलकुल बाहरी लोकमत — इंग्लैंड और भारतके पत्रोंकी ओर आकृष्ट करता हूँ। वे लगभग एकमतसे इस निष्कर्षपर पहुँचे हैं कि भारतीयोंके पास शिकायत करनेके उचित कारण हैं। और इस सम्बन्धमें, में अक्सर दुहराये जानेवाले इस कथनको मानने से इनकार करता हूँ कि बाहरी देशोंके मतका आधार दक्षिण आफ्रिकासे भारतीयों द्वारा भेजी जाने वाली अतिरंजित रिपोर्ट हैं। इंग्लैंड और भारतको भेजी जानेवाली रिपोर्टोंका थोड़ा-बहुत ज्ञान रखनेका दावा मुझे है। और मुझे कहने में कोई संकोच नहीं कि उन रिपोर्टों में करीब-करीब हमेशा ही कम बतानेकी भूल की गई है। ऐसा एक भी वक्तव्य नहीं दिया गया, जिसे अकाट्य प्रमाणोंसे साबित न किया जा सकता हो। परन्तु सबसे अधिक उल्लेखनीय बात तो यह है कि जिन तथ्योंको स्वीकार कर लिया गया है, उनके बारेमें कोई झगड़ा है ही नहीं। उन्हीं तथ्योंके आधारपर बना बाहरी मत यह है कि दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके साथ उचित व्यवहार नहीं किया जाता। मैं एक उग्र विचारोंके पत्र 'स्टार' से केवल एक उद्धरण दूँगा । दुनियाके सबसे गम्भीर पत्र 'टाइम्स' का मत तो दक्षिण आफ्रिकाके हर व्यक्तिको मालूम है।

२१ अक्तूबर, १८९५ के 'स्टार' ने श्री चेम्बरलेनसे मिलनेवाले शिष्टमण्डल के सम्बन्धमें विचार प्रकट करते हुए कहा है :

ब्रिटिश भारतीय प्रजाजन जिस घृणित उत्पीड़न के शिकार बनाये जा रहे हैं, उसपर प्रकाश डालनेके लिए ये विवरण काफी हैं। नया भारतीय प्रवासी कानून संशोधन विवेवक, जिसका मंशा भारतीयोंको करीब-करीब गुलामीकी हालत में गिरा देना है, इसका एक और उदाहरण है। यह चीज एक भयानक अन्याय, ब्रिटिश प्रजाका अपमान, अपने रचयिताओंके लिए शर्मका विषय और हमपर एक कलंक है। प्रत्येक अंग्रेजका कर्तव्य है कि वह दक्षिण आफ्रिकी व्यापारियों के लोभको ऐसे लोगोंपर तीखा अन्याय बरपा करने न दे, जिनको घोषणा और संवधि दोनोंके द्वारा समान रूपसे कानूनके सामने हमारी बराबरी का दर्जा दिया गया है।

अगर मैं आपको सिर्फ यह विश्वास दिला सकूं कि दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंके प्रति 'बड़ी से बड़ी दयालुता' नहीं दिखाई गई और वर्तमान हालतोंका दोष यूरोपीयोंपर