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८०. नेटालमें अन्नाहार

नेटालमें, या यों कहिए कि सारे दक्षिण आफ्रिकामें, इस कार्यके लिए बड़े कठिन प्रयत्नकी जरूरत है। फिर भी, ऐसे स्थान बहुत नहीं हैं, जहाँ अन्नाहारका अवलम्बन नेटालकी अपेक्षा अधिक स्वास्थ्यकारी, मितव्ययितापूर्ण या व्यावहारिक हो। बेशक फिलहाल अन्नाहार यहाँ कम खर्चमें नहीं हो पाता। निश्चय ही अन्नाहारी बने रहनेके लिए भारी आत्मनिग्रहकी आवश्यकता होती है। फिर, नये सिरेसे अन्नाहारी बनना तो लगभग असम्भव ही मालूम होता है। मैंने इस प्रश्नपर बीसियों लोगोंसे चर्चा की है और सबने मुझसे यही प्रश्न किया है कि "लंदनमें तो सब ठीक है; वहाँ बीसियों अन्नाहारी जलपान गृह मौजूद हैं। परन्तु दक्षिण आफ्रिकामें बहुत कम पौष्टिक अन्न-आहार प्राप्त होता है। यहाँ आप अन्नाहारी कैसे बन सकते या रह सकते हैं? " दक्षिण आफ्रिकाकी आबहवा समशीतोष्ण है और यहाँ फल-शाकादिके अक्षय साधन हैं। इसलिए सोचा जा सकता है कि यहाँ ऐसा उत्तर पाना सम्भव नहीं है। फिर भी यह उत्तर है पूर्णतः उचित। यहाँ अच्छेसे अच्छे होटलमें भी दुपहरके भोजनके समय मामूली तौरपर सिर्फ आलूका शाक मिलता है, सो भी बुरी तरहसे पका हुआ। ब्यालूके समय शायद दो शाक मिल जाते हैं और उनमें मुश्किलसे ही कभी कोई फेरफार होता है। दक्षिण आफ्रिकाके इस उद्यान-उपनिवेशमें तो मौसममें फल कौड़ी-मोल मिल सकते हैं। इसलिए होटलोंमें बहुत कम फल मिलना कलंककी बातसे तनिक भी कम नहीं है। दालें तो अपने अभावके कारण ही याद आती हैं। एक सज्जनने मुझे लिखकर पूछा था कि क्या डर्बनमें दालें मिल सकती हैं? चार्ल्सटाउन और आसपासके कस्बों में ये उन्हें नहीं पा सके। कवची मेवे तो सिर्फ क्रिसमसके दिनोंमें मिल सकते हैं।

यह है वर्तमान परिस्थिति। इसलिए अगर मैं लगभग ९ महीनोंके विज्ञापन और व्यक्तिगत तौर पर समझाने-बुझानेके बावजूद विवरणमें बहुत कम प्रत्यक्ष प्रगति ही दिखा सकूं तो अन्नाहारी मित्रोंको आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अन्नाहारके प्रचारमें सिर्फ ऊपर बताई हुई कठिनाइयाँ ही नहीं हैं। यहाँके लोग स्वर्णके अलावा दूसरी बातोंके बारेमें बहुत कम सोचते हैं। यह स्वर्ण-ज्वर इस प्रदेशमें इतना संक्रामक है कि इसने आध्यात्मिक गुरुओं-समेत छोटे और बड़े सभी लोगोंको ग्रस लिया है। जीवनके उच्चतर कार्योंके लिए उनके पास समय नहीं है। इस जीवनके परेकी सोचनेके लिए उन्हें अवकाश नहीं मिलता।

'वेजिटेरियन' की प्रतियाँ हर सप्ताह नियमपूर्वक अधिकतर पुस्तकालयोंको भेज दी जाती हैं। कभी-कभी समाचारपत्रोंमें विज्ञापन भी दिये जाते हैं। अन्नाहारके तत्त्वोंका परिचय देनेके प्रत्येक अवसरका उपयोग किया जाता है। अबतक फलस्वरूप कुछ सहानुभूतिपूर्ण पत्र-व्यवहार और प्रश्न ही प्राप्त हो सके हैं। कुछ पुस्तकें भी बिकी हैं। उनके अलावा बहुत-सी मुफ्त बाँटी गई हैं । पत्र-व्यवहार और बातचीतमें दिलचस्प बातें सामने आती रही हैं। एक महिलाने 'एसॉटरिक क्रिश्चियानिटी' के विषयमें मेरे