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नेटालमें अन्नाहार

साथ पत्र-व्यवहार किया था। जब उसे मालूम हुआ कि इस पंथका अन्नाहारके तत्त्वोंसे कुछ सम्बन्ध है तो वह नाराज हो गई। उसकी चिढ़ इस हदतक पहुँची कि उसे जो पुस्तकें पढ़नेको दी गई थीं उन्हें उसने बिना पढ़े ही वापस कर दिया। एक सज्जन मानते हैं कि आदमीका किसी प्राणीको मारना या कत्ल करना लज्जाकी बात है। वे 'अपनी जान बचानेके लिए भी किसीकी हत्या करनेको तैयार नहीं' हैं। परन्तु अपने लिए पकाया गया मांस खाने में उन्हें कोई पसोपेश नहीं होता।

दक्षिण आफ्रिकामें और खासकर नेटालमें अन्नाहारकी दृष्टिसे इतना कुछ करना सम्भव है कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। कमी सिर्फ अन्नाहारके प्रचारकोंकी है। यहाँकी मिट्टी इतनी उपजाऊ है कि उसमें लगभग सभी कुछ पैदा हो सकता है। बड़े-बड़े भूखण्ड पड़े हुए सिर्फ कुशल हाथोंकी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि वे उन्हें सोनेकी सच्ची खानोंमें बदल दें। अगर थोड़े-से लोगोंको जोहानिसबर्गके सोनेकी ओरसे ध्यान हटाकर कृषिके अधिक शान्तिपूर्ण तरीकेसे धन कमानेकी ओर ध्यान देनेके लिए और अपने रंग-द्वेषसे ऊपर उठनेके लिए राजी किया जा सके, तो नेटालमें निस्सन्देह हर प्रकारके शाक और फल उपजाये जा सकते हैं। दक्षिण आफ्रिकाकी आबहवा ऐसी है कि यूरोपीय अकेले उतनी अच्छी तरह जमीनकी जुताई कभी नहीं कर सकेंगे, जितनी अच्छी तरहसे उसे जोतना सम्भव है। भारतीय उनकी मददके लिए मौजूद है, परन्तु रंग-द्वेषके कारण यूरोपीय उनसे लाभ उठाना नहीं चाहते। और यह रंग-भेद दक्षिण आफ्रिका में बहुत प्रबल है। नेटालकी समृद्धि भारतीय मजदूरोंपर निर्भर करती है, यह बात मानी हुई है। परन्तु यहाँ भी रंग-द्वेष बहुत प्रबल है। मेरे पास एक बाग-मालिकका पत्र आया है। उसकी बड़ी इच्छा है कि भारतीय मजदूरोंको कामपर लगा लें; परन्तु वे इस भेदभावके कारण लाचार हैं। इसलिए अन्नाहारियोंको तो देशसेवा के कामका अवसर प्राप्त है। दक्षिण आफ्रिकामें दिन-प्रतिदिन गोरे ब्रिटिश प्रजाजनों और भारतीयोंका सम्पर्क बढ़ता जा रहा है। उच्चतम अंग्रेज और भारतीय राजनीतिज्ञोंका मत है कि ब्रिटेन और भारतको प्रेमकी जंजीरसे ऐसा बाँधा जा सकता है कि वे फिर कभी अलग न हो सकें। अध्यात्मवादियोंको ऐसी एकतासे अच्छे परिणामोंकी आशा है। परन्तु दक्षिण आफ्रिकी गोरे ब्रिटिश प्रजाजन ऐसी एकतामें बाधा डालने और सम्भव हो तो उसे रोकनेका शक्तिभर प्रयत्न कर रहे हैं। ऐसी हालतमें, अगर कुछ अन्नाहारी आगे बढ़ें तो वे ऐसे संकटपर काबू पा सकते हैं।

मैं एक सुझाव देकर नेटालके कामका यह संक्षिप्त सिंहावलोकन समाप्त कर दूंगा। अगर कुछ साधन-सम्पन्न और अन्नाहार सम्बन्धी साहित्यसे सुपरिचित लोग संसारके भिन्न-भिन्न भागोंकी यात्रा करें, विभिन्न देशोंके साधनोंकी जांच-पड़ताल करें, अन्नाहारके दृष्टिकोणसे उनकी सम्भावनाओंका लेखाजोखा लें और जिन देशोंको अन्नाहारके प्रचारके लिए तथा आर्थिक दृष्टिसे बसनेके लिए उपयुक्त समझें, उनमें निवास करनेके लिए अन्नाहारियोंको आमन्त्रित करें, तो अन्नाहारके प्रचारका बहुत कार्य किया जा सकता है। गरीब अन्नाहारियोंके लिए उन्नतिके नये स्थान पाये जा सकते हैं और संसारके विभिन्न भागोंमें अन्नाहारियोंके सच्चे केन्द्र स्थापित किये जा सकते हैं।