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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बदल लिया था। गिरफ्तार करनेवाले पुलिस सिपाहीने जानबूझकर उसका जो अपमान[१] किया था उसको इसीकी आड़में नजरअन्दाज कर देनेका सुपरिटेंडेंटने प्रयत्न किया है। याद रखना चाहिए कि उक्त सिपाहीको कोई जानकारी नहीं थी कि नाम कब बदला गया था और सुपरिटेंडेंटका जो यह खयाल है कि उसने आवारा कानूनकी पकड़से भाग निकलनेके लिए अपनी राष्ट्रीयताको छिपानेका प्रयत्न किया, सो अगर ऐसा होता तो क्या उसका रूप ही उसकी असली राष्ट्रीयता प्रकट कर देनेके लिए काफी नहीं था? उसे अपने नाम और जन्मके बारेमें भी कोई शर्म नहीं थी, क्योंकि उससे नाम और जन्मके बारेमें जो प्रश्न पूछे गये उनका उसने फौरन उत्तर दिया था। उसके उत्तरोंसे खुशमिजाज सुपरिटेंडेंट ऐसा खुश दिखलाई दिया कि उसके मुँहसे बरबस उद्गार निकल पड़ा — 'ठीक है, मेरे बेटे, अगर सब लोग तुम्हारे जैसे होते तो पुलिसको कोई कठिनाई न होती।"

अगर अपना धर्म बदलना गलती नहीं है, तो स्पष्ट ही अपना नाम बदलना भी कोई गलती नहीं कही जा सकती। छोटी-छोटी बातोंकी बड़ी बातोंके साथ तुलना की जाये तो श्री क्विलियम अब हाजी अब्दुल्ला बन गये हैं, क्योंकि उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया है। मनिकाके भूतपूर्व महावाणिज्य दूत श्री वेबने भी इस्लाम धर्म स्वीकार करनेपर, मुस्लिम नाम ग्रहण कर लिया है। सिपाहियोंके विचारसे तो भारतीयोंका ईसाई नाम ही नहीं, ईसाई पोशाक भी धारण करना अपराध है। और अब, सुपरिंटेंडेंट के मतानुसार, धर्म-परिवर्तन भारतीयोंको संदेहका पात्र बना देगा। परन्तु मान लें कि धर्म-परिवर्तन सच्चे विश्वासके कारण किया गया है, कानूनसे बचनेके लिए किसी चालके तौरपर नहीं, तो फिर ऐसा क्यों होना चाहिए? प्रस्तुत मामले में मैं मानता हूँ कि ये दोनों व्यक्ति ईमानदार ईसाई हैं, क्योंकि मुझे मालूम हुआ है कि डाक्टर बूथ[२] दोनोंका आदर करते हैं। बेशक, सुपरिंटेंडेंट कहेंगे — "मगर यह कैसे समझें कि कोई आदमी सच्चा ईसाई है, या ईसाईके वेशमें शैतान है?" इस सवालका जवाब देना कठिन है। मैंने अदालतसे निवेदन किया था कि हर मामले का निर्णय उसके अपने ही गुण-दोषके आधारपर किया जाये और न्याय करनेमें जिन बातोंको पहलेसे मानकर चला जाता है, उनका लाभ जिस तरह दूसरे वर्गोंको दिया जाता है उसी तरह भारतीयोंको भी दिया जाये।

मैंने निवेदन किया कि अगर दो आदमी भद्र पोशाक पहने हुए साढ़े नौ बजे रातको शान्तिके साथ मुख्य मार्गसे जा रहे हैं, टोके जानेपर रुक जाते हैं और दावा करते हैं कि वे बागसे लौटकर घर जा रहे हैं; और उनका घर रोके जानेके स्थानसे केवल सात मिनटके रास्तेपर है; उनमें से एक मुहर्रिर और दूसरा शिक्षक है (जैसा कि इन दोनों अभागे लोगोंके बारेमें है) तो उन्हें साधारण न्याय बुद्धिका लाभ मिलना

 
  1. जब अभियुक्तने अपना नाम सैम्युएल रिचर्ड्स बताया तब पुलिसका सिपाही उसपर हँसा था।
  2. डर्बनके सेंट आइडन्स चर्चके पादरी; वह भारतीयों द्वारा संस्थापित एक छोटे-से धर्मार्थ चिकित्सालयकी देख-रेख करते थे। बोभर युद्धके दौरान, १८९९ में डा° बूथने भारतीय आहत सहायक दल के प्रशिक्षण में सहायता की थी।