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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अध्यापकपर कभी किसी अधम अपराधका आरोप नहीं किया गया। अगर वह ९ बजे रातके बाद बाहर निकलनेके लायक नहीं है तो वह रविवासरीय स्कूलका शिक्षक होने लायक भी नहीं है। लोग तो ऐसा मानेंगे कि उसके रविवासरीय स्कूलका शिक्षक होनेसे, जहाँ कि वह सुकुमार बच्चोंके चारित्र्यका गठन करनेवाला है, उसका ९ बजे रात के बाद बाहर रहना कम खतरनाक है। सुपरिंटेंडेंटका कथन है कि उनके दलने "अरब व्यापारियों या दूसरे इज्जतदार गैर-गोरोंको रातमें कभी नहीं छेड़ा।" क्या ये दोनों युवक 'दूसरे इज्जतदार गैर-गोरों' में शामिल किये जाने लायक नहीं थे? मैं उनसे अनुरोध और प्रार्थना करता हूँ कि वे भली-भाँति विचार करें, क्या उन्होंने स्वयं इन दोनों युवकोंको गिरफ्तार किया होता? मैं उनके ही शब्दोंमें कहता हूँ कि "अगर उनका पूरा दल उनके समान ही विवेकी और खुशमिजाज होता, तो कोई कठिनाई होती ही नहीं।"

मेरा खयाल है, मेरी "खुली चिट्ठी" प्रकाशित करते हुए आपने कृपापूर्वक कहा था कि सच्ची शिकायतोंके मामले आपकी सहानुभूति तुरन्त प्राप्त करेंगे। क्या आप इस मामलेको सच्ची शिकायत मानते हैं? अगर आप मानते हैं तो मैं आपकी सहानुभूतिकी माँग करता हूं, ताकि इस तरह के मामले फिरसे न हों। जो इज्जतदार भारतीय युवक मेरी सलाह लेना पसन्द करते हैं उन्हें यह सलाह देना मुझे कठिन मालूम हुआ है कि वे अपने मालिकोंसे परवाने ले लें। मैंने उन्हें मेयरके पाससे परवाने लेनेकी सलाह दी है। परन्तु पहली ही अर्जीके नामंजूर हो जानेसे दूसरोंका उत्साह ठंडा पड़ गया है। और जनता ऐसी गिरफ्तारियोंको पसन्द करती रहेगी तो मजिस्ट्रेट के विपरीत मन्तव्यके बावजूद पुलिसको उन्हें दुहरानेकी प्रेरणा मिल सकती है। इसलिए, समाचारपत्र अपने विचारोंसे या तो स्पष्टतः इज्जतदार भारतीयोंके लिए मेयरका परवाना पाना सरल बना सकते हैं, या फिर पुलिसके लिए भविष्य में ऐसी गिरफ्तारियाँ करना लगभग असम्भव बना सकते हैं। इसके अलावा, निगमपर मुकदमा चलानेका भी एक तरीका है सही, परन्तु वह आखिरी तरीका है।

आपका,

मो° क° गांधी

[अंग्रेजीसे]
नेटाल मर्क्युरी, ६-३-१८९६