उपर्युक्त विधेयकके खण्ड १ द्वारा रद किया गया कानून निम्नलिखित है :
इसलिए नेटालको विधान परिषद और विधानसभाके परामर्श तथा सहमतिके साथ और उनके द्वारा महामहिमामयी सम्राज्ञी निम्नलिखित कानून बनाती हैं :
१. इस कानूनके खण्ड २ में अपवाद माने गये लोगोंको छोड़कर एशियाई वंशों के लोगोंको किसी निर्वाचक सूची या मतदाता सूची में अपने नाम लिखानेका या १८९३ के संविधान कानूनके खण्ड २२ के, अथवा विधानसभा सदस्योंके चुनाव-सम्बन्धी किसी भी कानून के अर्थके अन्तर्गत निर्वाचकोंकी हैसियतसे मत देनेका अधिकार नहीं होगा।
२. इस कानूनके खण्ड १ की व्यवस्थाएँ उस खण्ड में उल्लिखित वर्गके उन लोगोंपर लागू नहीं होंगी, जिनके नाम इस कानूनके अमलमें आनेकी तारीखको किसी मतदाता सूचीमें वाजिबी तौरसे दर्ज हों और जो अन्यथा निर्वाचक बननेकी योग्यता तथा हक रखते हों।
विचाराधीन विधेयकके सम्बन्धमें २८ अप्रैल, १८९६ को विधानसभाको एक प्रार्थनापत्र[१] भेजा गया था। उसमें भारतीयोंके तत्सम्बन्धी विचार स्पष्ट कर दिये गये थे। उसकी एक नकल इसके साथ नत्थी है, जिसपर 'क' चिह्न लगा है।
६ मई, १८९६ को विधेयकका दूसरा वाचन हुआ था। उस समय प्रधान मन्त्री माननीय सर जॉन रॉबिन्सनने अपने भाषणके दौरान कहा था कि मन्त्रियोंने आपसे यह जानने की कोशिश की थी कि क्या आप पूर्वोक्त विधेयकमें 'चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाएँ' शब्दोंके पहले 'मताधिकारपर आधारित' शब्द जोड़ देनेको सहमत होंगे; और आप इसके लिए राजी थे।
- ↑ देखिए "प्रार्थनापत्र : नेटाल विधान सभाको", २७-४-१८९६।