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प्रार्थनापत्र : जो° चेम्बरलेनको


इसपर ७ मई, १८९६ को प्राथियोंने महानुभावको निम्नाशय का तार भेजा :

भारतीय समाज आपसे हार्दिक विनती करता है कि नेटाल मताधिकार विधेयक या उसमें मन्त्रियों द्वारा गत रात्रिको पेश किये गये परिवर्तनों को मंजूर न करें। प्रार्थनापत्र तैयार कर रहे हैं।

तथापि, ११ मई, १८९६ को तद्विषयक समितिको बैठकमें सर जॉन रॉबिन्सनने घोषणा की कि महानुभावने और भी परिवर्धन कर देने — अर्थात् 'मताधिकार' के पहले 'संसदीय' शब्द जोड़ देनेकी सम्मति दे दी है।

फलत: विधेयकका प्रातिनिधिक संस्थाओं-सम्बन्धी भाग अब इस प्रकार पढ़ा जायेगा 'संसदीय मताधिकारपर आधारित चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाएँ।'

प्राथियोंका नम्र खयाल है कि जहाँतक भारतीय समाजका — और सचमुच, सभी समाजोंका — सम्बन्ध है, वर्तमान विधेयक उस कानूनसे भी बदतर है, जिसे वह रद करता है।

इसलिए प्रार्थियोंको दुःख है कि आपकी प्रसन्नता विधेयकको मंजूरी देनेमें रही। परन्तु उनका विश्वास है कि नीचे आपके सामने जो तथ्य और तर्क पेश किये जा रहे हैं उनसे आपको अपने विचारोंपर फिरसे गौर करनेकी प्रेरणा मिलेगी।

प्रार्थियोंका हमेशासे यह दावा रहा है कि भारतमें भारतीयोंको निश्चय ही 'चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाओं' का लाभ प्राप्त है। परन्तु मताधिकारके प्रश्न पर प्रकाशित लेखादिसे मालूम होता है कि भारतीयोंके पास ऐसी संस्थाएँ हैं — यह महानुभाव नहीं मानते। महानुभावके मतके लिए अधिक से अधिक आदर रखते हुए प्रार्थी संलग्न पत्र 'क' में उद्धृत अंशोंकी ओर महानुभावका ध्यान आकर्षित करते हैं। उनमें विपरीत मतका पोषण किया गया है।

भारतमें 'चुनावमूलक प्रातिनिधिक संस्थाओं' के विषय में आपके विचारों और वर्तमान विधेयककी स्वीकृति से नेटालके भारतीय समाजकी स्थिति अत्यन्त कष्टकर और अटपटी हो गई है।

प्राथियोंका निवेदन है कि :

(१) नेटालमें भारतीयोंके मताधिकारपर प्रतिबन्ध लगानेवाले किसी कानूनकी जरूरत नहीं है।

(२) अगर इस विषय में कोई सन्देह हो तो पहले जाँच कराई जाये कि इस प्रकारकी आवश्यकता है या नहीं।

(३) अगर मान लिया जाये कि आवश्यकता है ही, तो भी वर्तमान विधेयक सीधे और खुले तरीकेसे कठिनाईका सामना करनेके लिए नहीं बनाया गया।

(४) अगर सम्राज्ञी-सरकारको पूरा सन्तोष हो गया है कि ऐसे कानूनकी जरूरत है और वर्गगत कानून बनाये बिना किसी विधेयकसे कठिनाई हल न होगी, तो ज्यादा अच्छा यह होगा कि मताधिकार-विधेयक कोई भी हो, उसमें भारतीयोंका उल्लेख विशेष रूपसे किया जाये।