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तादीखवार जीवन-वृतांत
दिसम्बर : लंदनकी मैट्रिक परीक्षा में बैठे, परन्तु असफल रहे।
इस वर्ष में थियोसॉफिकल प्रभावके कारण बहुत-सा थियोसॉफिकल और अन्य धार्मिक साहित्य पढ़ा, जिसमें एडविन आर्नोल्डकी 'साँग सेलेस्टियल', लाइट ऑफ एशिया', मूल 'भगवद्गीता' और 'बाइबिल' भी शामिल थीं। गिरजा- घरकी प्रार्थनाओंमें गये और डा° जोजेफ पार्कर जैसे प्रसिद्ध धर्मोपदेशकोंके प्रवचन सुने।

१८९०

इस वर्षके आरम्भ में मैंचेस्टरके 'वेजिटेरियन मेसेंजर' और लंदनके 'वेजिटेरियन' तथा दोनों स्थानोंके अन्नाहारी मण्डलोंका परिचय हुआ। जोशुआ ओल्डफील्डके साथ अन्तर्राष्ट्रीय अन्नाहारी मण्डलकी बैठकमें गये। सादगी से रहना शुरू किया। आहारके प्रयोग जारी रखे। कुछ समयतक वेजिटेरियन क्लबका संचालन किया, जिसके अध्यक्ष जोशुआ ओल्डफील्ड, उपाध्यक्ष एडविन आर्नोल्ड और मन्त्री गांधीजी स्वयं थे।
जून : मैट्रिक परीक्षा में उत्तीर्ण।
१९ सितम्बर : अन्नाहारी मण्डलमें शामिल हुए और उसकी कार्यकारिणीके सदस्य बने।

१८९१

३० जनवरी : चार्ल्स ब्रेडलाके दफन संस्कारमें शामिल हुए। उनके नास्तिकवादका प्रभाव मनपर नहीं पड़ा। उलटे, श्रीमती बेसेंटकी पुस्तक हाउ आई बिकेम ए थियोसॉफिस्ट' पढ़नेपर उसके प्रति अरुचि पक्की हो गई।
२० फरवरी : अन्नाहारी मण्डलको बैठकमें सर्वप्रथम भाषण — डा° एलिन्सनके इस दावेके समर्थनमें कि गर्भ निरोध के बारेमें शुद्धिवादियोंके मतके विरुद्ध विचार रखनेके बावजूद उन्हें मण्डलका सदस्य बननेका हक है, हालाँकि गांधीजी स्वयं उनके विचारोंसे सहमत नहीं थे।
२१ फरवरी : 'वेजिटेरियन' में एक लेख लिखकर शराबको 'मानवजातिका वह शत्रु, सभ्यताका वह अभिशाप' कहा।
२६ मार्च : लंदन थियोसॉफिकल सोसाइटीके सह-सदस्य बनाये गये।
१ मई : अन्नाहारी मण्डलोंके संयुक्त संघकी बैठकके लिए मण्डलके प्रतिनिधि नियुक्त किये गये।
१० जून : बैरिस्टर बने।
कानूनका अध्ययन करते समय दादाभाई नौरोजीके व्याख्यान सुनने जाते रहे। फ्रेडरिक पिनकॉटने ईमानदारी और मेहनतपर जोर दिया, जिससे आगे चलकर बैरिस्टरके रूपमें सफलता प्राप्त करनेकी आशा प्रबल हुई।
११ जून: उच्च न्यायालय में बैरिस्टरके तौरपर नाम दर्ज।
१२ जून : भारतको रवाना।