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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

छतपर सोते थे, और मैं भी ऐसा ही करता था। प्रभात-सूर्य की गर्मी भी आप नहीं सह सकते । छतपर आप हमेशा सुरक्षित रहते हैं। यह गर्मी लगभग तीन दिन तक रही। बाद में, चौथी रात को हम स्वेज नहर में दाखिल हुए। स्वेज के दीप बहुत दूर से दिखाई पड़ने लगे थे। लाल सागर कहीं तो बहुत चौड़ा था, कहीं बहुत सँकरा इतना सँकरा कि हम दोनों ओर की भूमि देख पाते थे। स्वेज नहर में दाखिल होने के पहले हम 'हेल्स गेट' से गुजरे । 'हेल्स गेट' बहुत सँकरा एक जल भाग है। यह दोनों ओर पहाड़ों से बँधा हुआ है। उसे 'हेल्स गेट' इसलिए कहा जाता है कि बहुत-से जहाज वहाँ टकरा कर नष्ट हो जाते हैं। हम ने लाल सागर में एक नष्ट हुआ जहाज देखा था। स्वेज में हम लगभग आधा घंटा ठहरे। अब लोगों से सुना कि हमें ठंड झेलनी होगी। कुछ लोगों ने कहा था कि अदन से रवाना होने के बाद तुम्हें शराब की जरूरत पड़ेगी। मगर यह बात गलत निकली। अब तक मैं सह-यात्रियों से थोड़ी-थोड़ी बातचीत करने लगा था। कुछ ने कहा था कि अदन के आगे मांस की जरूरत पड़ेगी, मगर ऐसा नहीं हुआ। अपने जीवन में पहली बार मैंने अपने जहाज के आगे बिजली की रोशनी देखी। वह चाँदनी जैसी दिखाई पड़ती थी। उससे जहाज का सामने का हिस्सा बड़ा सुन्दर लगता था । मुझे लगता है कि जो आदमी इसे किसी दूसरी जगह से देखता होगा उसे यह और भी सुन्दर दिखलाई पड़ती होगी। यह बात ठीक वैसी ही है जैसे कि हम अपने शरीर के सौन्दर्य का इतना आनन्द नहीं ले सकते, जितना कि दूसरे ले सकते हैं; अर्थात्, हम उसे सराहना की दृष्टि से देख नहीं सकते। स्वेज नहर की रचना मेरी समझ में नहीं आई । सचमुच वह अद्भुत है। जिस आदमी ने इसका निर्माण किया है उसकी प्रतिभा को कल्पना मैं नहीं कर सकता। पता नहीं कैसे उसने यह किया होगा। यह कहना कि उसने प्रकृति से होड़ की है, बिलकुल ठीक ही है। दो समुद्रों को जोड़ देना कोई सरल काम नहीं है। नहर से एक समय में सिर्फ एक जहाज निकल सकता है। इसके लिए कुशल मार्ग-दर्शन की आवश्यकता होती है। जहाज बहुत धीमी गति से चलता है। हमें उसके चलने का कोई भान नहीं होता। नहर का पानी बिलकुल गेंदला है। मुझे उसकी गहराई नहीं मालूम। चौड़ी वह उतनी ही है जितनी रामनाथ के पास आजी' नदी है। दोनों ओर आप आदमियों को चलते-फिरते देख सकते हैं। नहर के पास को जमीन ऊसर है। नहर फ्रांसीसियों की है। जहाज को मार्ग दिखाने के लिए इस्माइलिया से दूसरा मार्गदर्शक (पाइलट) आता है । फ्रांसीसी लोग नहर से गुजरने वाले हर जहाज से कुछ रुपया वसूल करते हैं। यह आमदनी बहुत बड़ी होती होगी। जहाज के बिजली के दीपक के अलावा लगभग २० फुट की दूरी पर दोनों ओर और भी चिराग दिखाई देते हैं। ये चिराग अलग-अलग रंगों के हैं। जहाज चिरागों की इन कतारों को पार करके निकलता है। नहर पार करने में लगभग २४ घंटे लगते हैं। इस दृश्य की खूबसूरती का बखान करना मेरी ताकत के बाहर है। उसे देखे बिना आप उसका आनन्द नहीं पा सकते । पोर्ट सईद इस नहर के अन्तिम सिरे का बन्दरगाह है। पोर्ट सईद का अस्तित्व ही स्वेज नहर के कारण है। हमारा जहाज शाम को वहाँ रुका।

१. राजकोट के पास।