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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अन्नाहारी और उसी वर्ग के मांसाहारी के बीच तुलना हो जाती है। यह तुलना शक्तिके साथ शक्तिकी है, शक्तिके साथ शक्ति और बुद्धि की नहीं; क्योंकि मैं इस समय तो सिर्फ यह गलत सिद्ध करनेका प्रयत्न कर रहा हूँ कि भारतीय अन्नाहारी अपने अन्नाहार के कारण शारीरिक दृष्टि से कमजोर है।

कोई चाहे जो आहार ग्रहण करे, शारीरिक और मानसिक शक्तिका एक-साथ बराबर विकास होना तो असंभव मालूम होता है। हाँ, इसमें विरले अपवाद भले ही हों। क्षतिपूर्तिके नियमकी माँग यह होगी कि मानसिक शक्तिमें जितनी बढ़ती होती है, शारीरिक शक्तिमें उतनी घटती हो। सैमसन जैसा शरीरबलशाली व्यक्ति ग्लैडस्ट्न जैसा मेधावी नहीं हो सकता। और अगर यह दलील मान ली जाये कि समाजको वर्तमान अवस्थामें अन्न या शाक-सब्जीके बदले किसी दूसरे आहारकी जरूरत है ही, तो क्या यह अन्तिम रूपसे साबित हो चुका है कि वह दूसरा आहार मांस ही है ?

फिर, क्षत्रियों का, भारत की तथाकथित योद्धा जातिका उदाहरण ले लीजिए। वे तो निस्सन्देह मांसाहारी हैं, और उनमें बहुत ही कम लोग ऐसे हैं, जिन्होंने कभी तलवार चलाई है ! मैं यह नहीं कहूँगा कि वे प्रजाति गत-रूपमें बहुत कमजोर हैं। बहुत पुराने जमाने में क्यों जायें, जबतक पृथुराज और भीम और उनके जैसे सब लोगों की याद बनी है, तबतक कोई मूर्ख ही विश्वास दिलाना चाहेगा कि उनकी प्रजाति कमजोर है। परन्तु अब तो यह खेदजनक बात सच है कि उनका ह्रास हो गया है। सचमुच युद्ध-कुशल लोग तो, अन्य लोगोंके साथ-साथ पश्चिमोत्तर प्रदेश के लोग हैं, जिन्हें 'भैया' कहा जाता है। वे गेहूँ, दाल और शाक-सब्जियों पर निर्वाह करते हैं। वे शान्तिके संरक्षक हैं। देशी सेनाओंमें उनकी संख्या बहुत बड़ी है।

उपर्युक्त तथ्यों से आसानी से समझा जा सकता है कि अन्नाहार हानिकारक तो है ही नहीं, उलटे शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ानेवाला है। और जो यह कहा जाता है कि हिन्दुओं की शारीरिक दुर्बलता का कारण अन्नाहार है, वह केवल भ्रान्तिमूलक है।

[अंग्रेजीसे]

वेजिटेरियन, २८-२-१८९१




१.नार्थ-वेस्टर्न प्रोविन्स, ज वर्तमान उत्तरप्रदेश और आसपास के प्रदेशोंके कुछ हिस्ते मिलाकर बनाया गया था।