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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

घूमते होते हैं, वह अपना समय गाने में या अपने साथी से गप-शप करने में बिताता है। यह साथी उसकी पत्नी, भाई या दूसरा कोई सम्बन्धी भी हो सकता है। वह लगभग बारह बजे भोजन करता है, जो वह हमेशा अपने साथ ले जाता है। रोटियाँ तो उसमें हमेशा रहती है, साथ ही घी, एक सब्जी, या थोड़ी-सी दाल, या उसके बदले अथवा उसके अलावा कुछ अचार और तत्काल गायके थनसे दुहा हुआ ताजा दूध होता है। फिर दो या तीन बजे के लगभग अकसर वह किसी छायादार पेड़ के नीचे कोई आधे घंटे नींद लेता है। यह थोड़ी-सी नींद उसे सूर्य को कड़ी धूप से कुछ राहत देती है। छ: बजे वह घर लौटता है। सात बजे ब्यालू करता है, जिसमें कुछ गरम रोटियाँ और दाल या सब्जी होती है। ब्यालू की समाप्ति चावल और दूध या चावल और छाँछ से की जाती है। फिर घरका कुछ काम-धाम करने के बाद,जिसका मतलब अकसर तो अपने परिवार के लोगों के साथ हँसी-खुशी को बातें करना ही होता है, लगभग १० बजे रात को वह सो जाता है। वह या तो खुली जगहमें सोता है या किसी झोपड़ी में। झोंपड़ी में कभी-कभी बहुत भीड़ होती है। उसका आश्रय वह सर्दी या वर्षा में ही लेता है। यह उल्लेखनीय है कि ये झोंपड़ियाँ देखने में तो बड़ी दीन-हीन मालूम पड़ती हैं और अकसर इनमें खिड़कियाँ भी नहीं होती, फिर भी ये कुन्द नहीं होती। ये ग्रामीण ढंग से बनाई जाती हैं, इसलिए इनके दरवाजे हवा या आँधी से रक्षा के लिए नहीं, बल्कि चोरोंसे बचने के लिए बनाये जाते हैं। तथापि, इन झोंपड़ियों में सुधार की बहुत गुंजाइश है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

तो, एक खुशहाल ग्वाले का रहन-सहन इस प्रकार का होता है। अनेक दृष्टियों से उसके रहन-सहन का तरीका आदर्श है। उसको जबरन अपनी आदतों में नियमित रहना पड़ता है। वह अपना ज्यादा समय घरके बाहर बिताता है और जब वह बाहर रहता है, तब शुद्धतम वायु का सेवन करता है; उसे उचित मात्रा में व्यायाम मिलता है, और वह अच्छा और पौष्टिक भोजन करता है। और अन्तिम बात, परन्तु महत्त्व में अन्तिम नहीं, यह है कि वह उन अनेक चिन्ताओं से मुक्त रहता है, जो अकसर शरीर को कमजोर कर देती हैं।

[अंग्रेजीसे]

वेजिटेरियन, ७-३-१८९१