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भेंट:'वेजिटेरियन' के प्रतिनिधिसे--१

सिरोंसे की जा सकती है, जो बहुत-से थे और कटते ही फिर उग आते थे। उन्हें चार मुख्य शीर्षकोंमें बाँटा जा सकता है --धन, मेरे बुजुर्गोंको सहमति, सम्बन्धियोंसे जुदाई और जाति-बंधन।

पहले धनकी बात ले लें। यद्यपि मेरे पिता एकसे ज्यादा देशी रियासतोंके दीवान रहे थे, उन्होंने कभी धन-संग्रह नहीं किया। उन्होंने जो-कुछ कमाया, सब अपने बच्चोंकी शिक्षा, विवाहों और धर्मार्थ कार्योंमें खर्च कर डाला। फलत: हमारे पास बहुत पैसा नहीं बचा। वे कुछ अचल सम्पत्ति छोड़ गये थे और वही हमारा सब-कुछ थी। जब उनसे पूछा जाता था कि आपने अपने बच्चोंके लिए कुछ बचाकर क्यों नहीं रखा तो वे जवाब देते थे कि मेरे बच्चे ही मेरी सम्पत्ति है, और अगर मैं बहुत-सा रुपया जमा कर लूंगा तो बच्चे बिगड़ जायेंगे। इसलिए मेरे सामने रुपयेकी कठिनाई कम नहीं थी। मैंने राज्यसे कुछ छात्रवृत्ति पाने की कोशिश की, मगर मैं उसमें असफल रहा। एक जगह तो मुझसे कहा गया कि पहले स्नातक बनकर अपनी योग्यता सिद्ध करो, फिर छात्रवृत्तिकी अपेक्षा करना। अनुभव मुझे बताता है कि जिन सज्जनने यह बात कही थी, उन्होंने ठीक ही कहा था। परन्तु मैं किसी बातसे विचलित नहीं हुआ। मैने अपने सबसे बड़े भाईसे अनुरोध किया कि जो कुछ भी धन बच गया है वह सब इंग्लैंडमें मेरी शिक्षाके लिए दे दें।

भारतमें प्रचलित कुटुम्ब-प्रणालीका परिचय देने के लिए यहाँ थोड़ा-सा विषयान्तर किये बिना काम न चलेगा। भारतमें, इंग्लैंडके विपरीत, लड़के हमेशा माता-पिताके साथ ही रहते हैं; लड़कियाँ विवाहतक रहती हैं। वे जो कुछ कमाते हैं वह पिताके हाथोंमें जाता है। इसी तरह जो-कुछ खोते हैं वह भी पिताका ही नुकसान होता है। हाँ, भारी झगड़ा आदि हो जाने जैसी विशेष परिस्थितियोंमें तो लड़के भी अलग हो ही जाते है। परन्तु ये अपवाद हैं। मेनकी कानूनी भाषामें “पश्चिममें सम्पत्ति साधारणतः व्यक्तिगत होती है। पूर्वमें साधारणत: संयुक्त होती है।" सो, मेरे पास अपनी कोई सम्पत्ति नहीं थी। सब-कुछ मेरे भाईके हाथमें था और हम सब एक-साथ रहते थे।

तो, फिरसे धनकी बात। मेरे पिता जो थोड़ा-सा धन मेरे विचारसे बचा पाये थे वह मेरे भाईके हाथ में था। वह उनकी अनुमतिसे ही निकल सकता था। इसके अलावा, वह रुपया काफी नहीं था, इसलिए मैंने कहा कि सारी पूंजी मेरी शिक्षामें लगा दी जाये। आपसे मैं पूछता हूँ कि क्या यहाँ कोई भाई ऐसा करेगा? भारतमें भी ऐसे भाई बहुत कम है। उनसे कहा गया था कि पश्चिमी विचार ग्रहण करके मैं एक नालायक भाई साबित हो सकता हूँ। और मुझसे रुपया तो तभी वापस मिल सकेगा जब मैं जीवित भारत लौट सकूँ, और इसमें बहुत सन्देह व्यक्त किया जा रहा था। परन्तु मेरे भाईने ये सब उचित और सदाशयतापूर्ण चेतावनियाँ सुनी-अनसुनी कर दी। मेरे प्रस्तावकी स्वीकृतिके लिए केवल एक शर्त रखी गई। वह शर्त यह थी कि मैं अपनी माता और चाचाकी अनुमति प्राप्त कर लूं। मेरे भाई जैसे भाई बहुत लोगोंके हों! फिर मैं अपने ऊपर छोड़े गये काममें लगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि वह काम बड़ा दुःसाध्य था। सौभाग्यसे मैं अपनी माँका दुलारा था। उन्हें मुझपर बहुत