पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/१०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लड़ सकते । फिर भी यदि आपको ऊपर कही हुई बातें कबूल न हों, तो हमारी आपके साथ नहीं पटेगी। आपकी मर्जी हो और आपसे बने, तो आप हमें काट डालिए, मनमें आये तो तोपसे उड़ा दीजिए। किन्तु हमें जो पसन्द नहीं है, वह यदि आप करेंगे, तो हम उसमें आपकी मदद नहीं करेंगे और हमारी मददके बिना आप एक डग भी चल सकें, ऐसा नहीं है।

सम्भव है कि अपनी सत्ताके मदमें आप इसकी हँसी उड़ायें। हम अभी तो शायद यह न दिखा सकें कि आपका हँसना गलत है, किन्तु यदि हममें दम होगा तो आप देखेंगे कि आपका मद बेकार है और आपका हँसना 'विपरीत बुद्धि' का लक्षण है।

हम मानते हैं कि आप स्वभावतः धार्मिक जातिके लोग हैं, किन्तु हम तो धर्म- भूमिमें ही रहते हैं। आपका और हमारा साथ कैसे हुआ इसका विचार करना नाहक है, किन्तु अपने इस सम्बन्धका हम दोनों सदुपयोग कर सकते हैं।

आप भारतमें आनेवाले अंग्रेज, अंग्रेज-जनताके सच्चे नमूने नहीं हैं और हम आधे अंग्रेज बने हुए भारतीय भी सच्ची भारतीय जनताके नमूने नहीं कहे जा सकते । यदि अंग्रेजी जनता सब समझ जाये, तो आपके कामोंका विरोध करे। भारतीय प्रजाने तो आपके साथ बहुत ही कम सम्बन्ध रखा है। यदि आप अपनी सभ्यताको, जो वास्तवमें असभ्यता है, छोड़कर अपने धर्मकी छानबीन करें तो आप देखेंगे कि हमारी माँग ठीक है। आप इसी प्रकार भारतमें रह सकते हैं। यदि आप इस तरह रहें तो हमें आपसे जो कुछ सीखना है वह हम सीखेंगे और हमारे पाससे आपको जो बहुत- कुछ सीखना है, सो आप सीखेंगे । इस प्रकार हम एक-दूसरेका लाभ उठायेंगे और दुनियाको लाभ पहुँचायेंगे । किन्तु यह तो तभी सम्भव है जब हमारे सम्बन्धोंकी जड़ धर्मकी जमीनमें जमे ।

पाठक : जनतासे आप क्या कहेंगे ?

सम्पादक: जनता अर्थात् कौन ?

पाठक : अभी तो आप जिस अर्थमें इसे बरत रहे हैं वही जनता, अर्थात् जो लोग यूरोपीय सभ्यतामें रंगे हुए हैं, जो स्वराज्यकी पुकार उठा रहे हैं वे।

सम्पादक: मैं इस जनतासे कहूँगा कि जिस भारतीयपर [ स्वराज्यका ] सच्चा नशा चढ़ा होगा, वही अंग्रेजोंसे ऊपरकी बात कह सकेगा और उनके रोबमें नहीं आयेगा ।

सच्चा नशा तो उसपर ही चढ़ता है जो ज्ञानपूर्वक ऐसा मानता है कि भारतीय सभ्यता सर्वोपरि है और यूरोपीय सभ्यता दो दिनका तमाशा है। ऐसी तो कितनी ही सभ्यताएँ आकर चली गईं; अनेक आयेंगी और चली जायेंगी ।

सच्चा नशा तो उसीको चढ़ सकता है कि जो आत्मबलका अनुभव करके शरीर-शक्तिसे बिना दबे, निर्भय रहेगा और शस्त्र बलका उपयोग स्वप्नमें भी करनेकी बात नहीं सोचेगा ।

१. मूल पाठमें इस वाक्यकी शब्दावली कुछ भिन्न है और उलझी हुई है।


Gandhi Heritage Portal