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हिन्द स्वराज्य

सच्चा नशा तो उसी भारतीयको चढ़ा कहा जायेगा जो आजकी दयनीय दशासे बहुत ही ऊब उठा हो और जिसने पहलेसे ही जहरका प्याला पी लिया हो ।

यदि ऐसा एक भी भारतीय हो तो वह अंग्रेजोंसे ऊपरकी बात कहेगा और अंग्रेजोंको उसकी बात सुननी पड़ेगी।

ऊपरकी माँग कोई माँग नहीं है, बल्कि उससे भारतीयोंकी मनोदशा सुचित होती है। माँगनेसे कुछ नहीं मिलता । लेनेसे ही कुछ लिया जा सकेगा । लेनेके लिए शक्ति चाहिए । वह बल तो उसीमें होगा :

१. जो अंग्रेजी भाषाका उपयोग अनिवार्य होनेपर ही करे।

२. जो यदि वकील हो तो अपनी वकालत छोड़ दे और अपने घरमें चरखा चलाकर कपड़ा बुने ।

३. जो अपनी वकालतका उपयोग केवल लोगोंको समझाने और अंग्रेजोंकी आँखें खोलनेमें करे ।

४. जो वकील होकर भी वादी प्रतिवादीके झगड़ोंमें न पड़े, बल्कि अदालत छोड़ दे और अपने अनुभवसे दूसरोंको अदालत छोड़नेके लिए समझाए ।

५. जो, जैसे वकील वकालत छोड़ता है, उसी प्रकार न्यायाधीश हो तो अपना पद भी छोड़ दे।

६. जो यदि डॉक्टर हो तो अपना धन्धा छोड़े, और यह समझे कि लोगोंके चामकी चीरफाड़ करनेकी अपेक्षा उनकी आत्माको छूने और उसमें सुधार करके उन्हें स्वस्थ बनाना अधिक अच्छा है।

७. जो चाहे जिस धर्मका हो, डॉक्टर होकर यह समझे कि अंग्रेजी वैद्यक शालाओंमें जीवोंके प्रति जो निर्दयता बरती जाती है वैसी निर्दयतासे शरीर नीरोग बनानेकी अपेक्षा यह ज्यादा अच्छा है कि वह नीरोगी न हो, रोगी ही बना रहे।

८. जो डॉक्टर होनेपर भी खुद चरखा चलाये और रोगियोंको रोगका सही कारण बताकर उसे दूर करनेके लिए कहे, किन्तु निकम्मी दवाएँ देकर उनपर गलत लाड़ न दिखाये । वह समझेगा कि निकम्मी दवाएँ न लेनेसे यदि बीमारका शरीर छुट जाये, तो दुनिया अनाथ नहीं हो जायेगी और यही मानेगा कि उसने उस व्यक्तिपर सच्ची दया की है।

९. जो धनवान होते हुए भी धनकी चिन्ता किये बिना जो मनमें है वह कहे और ज़बर्दस्तसे-जबर्दस्त व्यक्तिकी भी परवाह न करे ।

१०. जो धनवान होकर अपना पैसा चरखे स्थापित करनेमें खर्च करे और स्वयं केवल स्वदेशी माल पहनकर और बरत कर दूसरोंको प्रोत्साहित करे ।

११. सब भारतीय यह समझें कि यह समय पश्चात्ताप, प्रायश्चित्त और शोकका है।

१२. सब समझें कि अंग्रेजोंके दोष ढूंढ़ना व्यर्थ है । वे हमारे दोषोंकी वजहसे भारतमें आये । हमारे दोषोंके कारण ही वे यहाँ रहते हैं और हमारे दोष दूर होनेपर वे चले जायेंगे अथवा बदल जायेंगे ।


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