पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/१०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

१३. सब समझें कि शोककी परिस्थितियोंमें आमोद-प्रमोद नहीं हो सकता; जबतक हमें चैन नहीं है तबतक हमारा जेलमें रहना या देशनिकाला सहना ही ठीक है।

१४. सब भारतीय समझें कि लोगोंको समझानेके उद्देश्यसे गिरफ्तार न होनेकी सावधानी रखना निरा मोह है।

१५. सब समझें कि कथनीसे करनीका प्रभाव कहीं अलग और अद्भुत होता है। निर्भय होकर मनमें जो कुछ हो, वह कहना ही चाहिए और वैसा कहनेका जो परिणाम हो उसे सहना चाहिए। तभी हम अपने कहनेका असर दूसरोंपर डाल सकेंगे ।

१६. सब भारतीय समझें कि हम दुःख उठाकर ही बन्धन मुक्त हो सकते हैं।

१७. सब भारतीय समझें कि अंग्रेजोंको उनकी सभ्यताके विषयमें प्रोत्साहित करके हमने जो पाप किया है उसे धो डालनेके लिए हमें अगर मृत्यु-पर्यन्त अंडमानमें रहना पड़े, तो वह भी कुछ अधिक नहीं होगा ।

१८. सब भारतीय समझें कि किसी भी राष्ट्रने दुःख सहन किये बिना उन्नति नहीं की है। लड़ाईके मैदानमें भी कसौटी कष्ट सहन करना ही है, दूसरोंको मारना नहीं। ऐसा ही सत्याग्रहके बारेमें भी है ।

१९. सब भारतीय ऐसा समझें कि यह कहना कि जब सब करेंगे तब हम करेंगे, न करनेका बहाना है। हमें ठीक लगता है, इसलिए हम करें; जब दूसरोंको ठीक लगेगा, तब वे करेंगे - यही करनेका मार्ग है। मैं स्वादिष्ट भोजन देखता हूँ, तो मैं खानेके लिए दूसरोंकी राह नहीं देखता । ऊपर कहे मुताबिक प्रयत्न करना, दुःख भोगना, स्वादिष्ट भोजन है। लाचारीसे करना और दुःख उठाना केवल बेगार है ।

पाठक : ऐसा सब लोग कब करेंगे और परतत्रन्ताका कब अन्त आयेगा ?

सम्पादक : आप फिर भूलते हैं। मुझे और आपको इसकी चिन्ता नहीं होनी चाहिए कि सब कब करेंगे । 'आप अपनी सँभालें, मैं अपनी सँभालता हूँ' - यह स्वार्थ-वचन माना जाता है, किन्तु यह परमार्थ-वचन है। मैं अपना भला करूंगा, तभी दूसरोंका भला करूँगा | सारी सिद्धियाँ इसीमें समाई हुई हैं कि मैं अपना कर्तव्य कर लूँ ।

आपसे विदा लेनेके पहले मैं फिर एक बार कहना चाहता हूँ :-

१. स्वराज्यका अर्थ अपने मनपर शासन करना है।

२. उसकी कुँजी सत्याग्रह, आत्मबल अथवा दया-बल है।

३. उस बलको आजमानेके लिए पूरी तरह स्वदेशीको अपनानेकी आवश्यकता है।

४. हम जो कुछ करना चाहते हैं, वह इसलिए नहीं कि हमारे मनमें अंग्रेजोंके प्रति द्वेष है या हम उन्हें सजा देना चाहते हैं, बल्कि इसलिए कि वैसा करना हमारा फर्ज है। कहनेका अर्थ है कि यदि अंग्रेज नमक-कर हटा दें, लिया हुआ धन वापस कर दें, सारे भारतीयोंको बड़े-बड़े ओहदे दें, लश्कर खत्म कर दें, तो हम उनकी मिलोंका कपड़ा पहनेंगे या अंग्रेजी भाषा काममें लायेंगे या उनके हुनर और उनकी कलाओंका उपयोग करेंगे, ऐसा नहीं है। हमें समझना चाहिए कि वह सभी कुछ वस्तुतः न करने योग्य है और इसलिए हम उसे नहीं करेंगे ।

Gandhi Heritage Portal