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हिन्द स्वराज्य : परिशिष्ट - २
फ्रेडरिक मैक्समुलर

हमारा सारा पालन-पोषण यूनानियों, रोमनों और केवल एक ही सामी जाति, अर्थात् यहूदियोंकी विचार सम्पद्पर हुआ है । यदि मैं अपने-आपसे यह प्रश्न करूँ कि अपना आन्तरिक जीवन अधिक सम्पूर्ण, अधिक व्यापक, अधिक सर्वस्पर्शी या ऐसा कहें सही अर्थोंमें अधिक मानवतापूर्ण बनानेके लिए जिस वस्तुकी आवश्यकता है वह हम यूरोपवासियोंको कहाँसे मिल सकती है तो मैं फिर भारतका ही नाम लूंगा ।

फ्रेडरिक वॉन इलेगेल

इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि पूर्वकालीन भारतीयोंको ईश्वरका सच्चा ज्ञान था। उनकी रचनाएँ उदात्त, प्रांजल और भव्य भावों और उद्गारोंसे परिपूर्ण हैं । उनकी गहराई और उनमें प्रतिबिम्बित भक्तिकी भावना विविध भाषाओंके साहित्य में प्राप्त ईश्वरपरक रचनाओंकी गहराई या भक्ति-भावनासे किसी भी प्रकार कम नहीं है । . • ऐसे राष्ट्रोंमें जिनके पास अपना दर्शन और तत्वज्ञान है और जो इन विषयोंके प्रति स्वाभाविक रुचि रखते हैं- - समयकी दृष्टिसे भारतका स्थान पहला है।

जे० ए० दुबोइ
( मैसूर में ईसाई धर्म प्रचारक; यह उद्धरण १५ दिसम्बर, १८२० को श्रीरंगपट्टमसे लिखी गई एक चिट्ठीसे लिया गया है ।)

विवाहित स्त्रियाँ अपने घरोंमें अपने अधिकारका उपयोग परिवारके सदस्यों में शान्ति और व्यवस्था बनाये रखनेमें करती हैं; और उनमें से अधिकांश इस महत्त्वपूर्ण कर्तव्यको जिस विवेक और दूरदर्शितासे निबाहती हैं उसकी तुलना यूरोपमें मुश्किलसे ही मिलेगी । बड़े-बड़े लड़के और बड़ी-बड़ी लड़कियाँ और उनके बच्चोंसे निर्मित, तीस-तीस, चालीस-चालीस व्यक्तियोंके परिवारोंको मैंने किसी बड़ी-बूढ़ी स्त्री, उन बड़े लड़के- लड़कियोंकी माँ या सासकी अध्यक्षतामें इकट्ठे रहते देखा है । मैंने देखा कि यह वृद्धा अपने व्यवस्था कौशलसे, अपनी उन बहुओंसे उनके स्वभावके अनुसार व्यवहार करके, परिस्थितियोंके अनुसार कभी कठोर होकर और कभी क्षमा और उदारता दिखाकर बरसों तक प्रतिकूल स्वभाववाली उन सारी स्त्रियोंमें शान्ति और सौहार्द रखने में सफल होती है । मैं पूछता हूँ कि क्या यह चीज ऐसी परिस्थितियोंमें हम अपने देशोंमें सिद्ध करनेकी उम्मीद कर सकते हैं ? हमारे देशोंमें तो हम इतना भी नहीं कर पाते कि एक ही घरमें रहनेवाली दो स्त्रियाँ आपसमें मिल-जुलकर रहें ।

१. इंटरनेशनल प्रिंटिंग प्रेस द्वारा १९१० में प्रकाशित मूल संस्करणमें मैक्समुलरके उद्धरणके बाद निम्नलिखित भी छपा था :

मिचल जी० मुलहाल, एफ० भार० एस० एस०
आंकड़े
प्रतिलाख जनसंख्या के अनुसार कैदियोंकी संख्या
१००से२३०
बहुत-से यूरोपीय राज्योंमें
९०
इंग्लैंड और वेल्स
३८
भारत

डिक्शनरी ऑफ स्टेटेस्टिक्स, एम० जी० मुलहाल एफ० आर० एस० एस० रूटलेज ऐंड सन्स, १८९९


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