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शिष्टमण्डलपर अन्तिम टिप्पणी

मिलता। आत्माकी खोज करनेका विचार भी वहीं किया जा सकता है। तुमने मुझसे ऐसा गूढ़ प्रश्न अपनी बाल्यावस्थामें किया, यह तुम्हारे पुण्यका सूचक है। तुम श्री वेस्ट' आदिकी सेवा कर सके यह भी फीनिक्सके प्रभावके कारण ही। फीनिक्समें सभी नौसिखिये रहते हैं, इसलिए तुमको दोष दिखाई देते होंगे । दोष तो होगा । फीनिक्स पूर्ण नहीं है, किन्तु हम उसे पूर्ण बनाने की इच्छा रखते हैं।

मैं जो कह चुका हूँ उससे फीनिक्सकी शालाका सम्बन्ध नहीं है। शाला तो, हमें जो-कुछ करना है, उसका साधन है । वह टूट जायें तो हम यह समझेंगे कि हम उस कामके लिए अभी तैयार नहीं हैं। तुम पढ़नेके लिए अधीर हो गये हो, यह मैं जानता हूँ। मेरी सलाह है कि धीरज रखो। तुम्हारे सम्बन्धमें मैंने बहुत विचार किया है। हम जब मिलेंगे तब समझाऊँगा । इस बीच बापूपर भरोसा रखना। जो कुछ समझमें न आया हो वह पूछना ।

श्री वेस्टने तुम्हें पाकेट-बुक दी यह ठीक है। तुमने भेंटकी खातिर सेवा नहीं की। उन्होंने तुम्हें पुस्तक भेंटके रूपमें नहीं दी है, बल्कि यादगारके रूपमें दी है। देवाके' सम्बन्धमें चिन्ता होती है। उसकी सँभाल रखना ।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ९२) से ।

सौजन्य : श्रीमती सुशीलाबेन गांधी ।

६. शिष्टमण्डलपर अन्तिम टिप्पणी
किल्डोनन कैसिल,
 
नवम्बर २५, १९०९

शिष्टमण्डलके सम्बन्धमें यह मेरी अन्तिम टिप्पणी है। मेरी प्रार्थना है कि इसको सब भारतीय ध्यानपूर्वक पढ़ें। मुझे आशा है कि मेरी यह टिप्पणी 'इंडियन ओपिनियन' में छपनेके पहले या तो हम दोनों भाई जेल जा चुके होंगे या शीघ्र ही चले जायेंगे ।

पोलकका काम

ऐसा प्रतीत होता है कि ज्यों-ज्यों जनरल स्मट्स विरोध करते हैं, त्यों-त्यों हमारी शक्ति भारतमें बढ़ती जाती है। किन्तु लोगोंको जगानेके लिए चार महीने कुछ भी

१. इन्टर नेशनल प्रिंटिंग प्रेस', फीनिक्सके प्रबन्धक, बीमारीकी अवस्थामें मणिलालने उनकी सेवा की थी; देखिए खण्ड ९, पृष्ठ ४७४ ।

२. देवदास, गांधीजीके सबसे छोटे पुत्र |

३. शिष्टमण्डलपर पहले लिखी गई टिप्पणियोंके लिए देखिए खण्ड ९ ।

४. यह इंडियन ओपिनियन (१८-१२-१९०९) के गुजराती विभागमें छपी थी ।

५. गांधीजी और हाजी छवीव । जब शिष्टमण्डल इंग्लैंड जा रहा था तब जहाजके साथी मुसाफिरोंने उन दोनोंके मैत्रीपूर्ण व्यवहारको देखकर समझा था कि वे भाई-भाई हैं। देखिए खण्ड ९, १४ २७६ ।


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