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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मयसम्पूर्ण

नहीं हैं। चार बरस भी काफी नहीं होंगे। तब श्री पोलकके कामकी सफलताकी कुंजी किसके पास है ? वह तो ट्रान्सवालके सत्याग्रहियोंके पास है । उन्होंने जो प्रयत्न किये हैं उनका सबने स्वागत किया है - वे पोलक हैं इसलिए नहीं, बल्कि वे हमारे प्रतिनिधिके रूपमें बोलते हैं, हमारी दुःख-गाथा सुनाते हैं इसलिए; हम भारतकी खातिर दुःख सहन करते हैं इसलिए; और हम सच्चे हैं, ऐसा भारतने समझ लिया है इसलिए ।

इंग्लैंडमें आन्दोलन

और इंग्लैंडमें क्या हो रहा है ? मैं यह नहीं बता सकता कि इंग्लैंडमें की गई हमारी हलचलकी जड़ कितनी गहरी जायेगी । १९०६ के शिष्टमण्डलके बाद समिति बनी । समितिने जो महत्त्वपूर्ण काम किया है, उसके सम्बन्धमें हम बहुत बात कर चुके हैं। लॉर्ड ऍम्टहिल' और सर मंचरजी अथक परिश्रम कर रहे हैं । वे इतना परिश्रम यह मानकर कर रहे हैं कि हम अन्ततक लड़ेंगे। किन्तु जो काम अब शुरू हुआ है वह इससे भी बड़ा है । उस कामका उद्देश्य प्रत्येक अंग्रेजके सम्मुख अपने संघर्षकी बात रखना और इंग्लैंडमें प्रत्येक भारतीयको [ स्थितिके सम्बन्धमें] पूरी जानकारी देना है । यह काम इसलिए शुरू नहीं किया गया कि हम अंग्रेज लोगोंपर निर्भर रहना चाहते हैं । हमारे संघर्ष में प्रत्येक मनुष्य सहायता कर सकता है । हमारे कार्यका उद्देश्य समस्त संसारमें अपने पक्षका औचित्य और ट्रान्सवालका अन्याय प्रकट करना है । हमारा सम्बन्ध अंग्रेज जनतासे है, इसीलिए हम उसे अपने कार्यकी जानकारी देते हैं । जान- कारी हासिल करके अंग्रेज लोग हमें बताते हैं कि हम जो कुछ कर रहे हैं, वह उचित है। वे हमारी सहायताके लिए धन भेजते हैं । इन सब बातोंसे हमें यह भान हुआ है कि हम उनकी बराबरीके हैं। वे हमें पत्र लिखते हैं तो इस तरह नहीं जैसे हमपर कृपा कर रहे हों । बल्कि हमारे भाई-बहनोंके रूपमें लिखते हैं । यह एक भिन्न प्रकारका मनोभाव है। [वे ] हमारे प्रति अपना कर्तव्य पूरा करते हैं। मान लीजिए, इस आन्दोलनमें एक लाख हस्ताक्षर कराये जाते हैं और एक लाख पैनी इकट्ठी की जाती हैं। इसका महत्त्व एकदम समझ में नहीं आ सकता । एक लाख पैनी अर्थात् लगभग ४१६ पौंड हुए। यह कोई मामूली रकम नहीं लेकिन इसमें रकमका इतना महत्त्व नहीं है । एक लाख हस्ताक्षर कराना कोई खिलवाड़ नहीं। इनको करानेके लिए लगभग ४० स्वयंसेवक, भारतीय और गोरे, निकल पड़े हैं । इतने लोग जबरदस्त प्रयत्न करेंगे तब कहीं इतने हस्ताक्षर प्राप्त हो सकेंगे । और, एक लाख लोग हमसे कहें कि लड़ो तो यह कोई मामूली बात नहीं है। चालीस स्वयंसेवक लड़ाई खत्म होने तक काम

१. भारतमें, जहाँ एच० एस० एल० पोलक (भारतीयोंको) दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंका मामला समझानेके लिए भेजे गये थे ।

२. समिति अध्यक्ष, मद्रासके गवर्नर; देखिए खण्ड ७, पृष्ठ २८ ।

३. भावनगरी (१८५१-१९३३), भारतीय बैरिस्टर जो इंग्लैंडमें बस गये थे, ब्रिटिश संसदके सदस्य, देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४२० तथा खण्ड ५, पृष्ठ २ ।

४. देखिए खण्ड ९, पृष्ठ ५१६ ।



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