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शिष्टमण्डलपर अन्तिम टिप्पणी

करते रहें, यह भी कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। वे यह सारी मेहनत किसलिए करेंगे ? हम दुःख उठा रहे हैं, इसीलिए तो ! केवल यह वड़बड़ाते रहें कि "हमें समान अधिकार चाहिए, न कोई मान सकता है, या इतना सहयोग देनेके लिए न तैयार हो सकता है ।

इतनी शक्ति लगानेके बाद ट्रान्सवालके भारतीय क्या करेंगे? यदि वे समस्त भारतीय समाजकी प्रतिष्ठाकी रक्षा करना चाहते हों तो मौत मंजूर कर लेंगे, किन्तु संघर्ष नहीं छोड़ेंगे। वे एक-दूसरेकी ओर नहीं ताकेंगे, बल्कि लड़ते ही रहेंगे। सब नागप्पन' होना चाहेंगे। संघर्ष लम्बा होगा तो उससे घबरायेंगे नहीं, बल्कि खुश होंगे, क्योंकि ज्यों-ज्यों दिन बीतते जाते हैं त्यों-त्यों लोग मानते जाते हैं कि हम ढोंगी नहीं हैं; और वे हमारी लड़ाईसे परिचित भी होते जाते हैं। कष्ट सहनकी यही विशेषता है । जब बहादुर मूर सैनिक एकके बाद एक फ्रांसीसी तोपोंके सामने आते चले गये और मरते चले गये तब फ्रांसीसी तोपचियोंने तोपें चलाने से इनकार कर दिया और वे शेष बचे हुए मूरोंसे गले मिले। हिम्मतका प्रताप ऐसा ही है । मूर जानपर खेलनेवाले थे, इसलिए अपनी ऐसी छाप डाल सके । उनको बन्दूकें चलाना आता होता तो वे ऐसी विजय न पा सकते। किन्तु वे मरना जानते थे। उन्होंने अपने कार्य द्वारा फ्रांसीसी तोपचियोंसे कहा : 'हम तुम्हारी तोपोंसे डरनेवाले नहीं हैं। हमें अपने शरीरकी अपेक्षा अपना देश और अपना धर्म अधिक प्यारा है। इसलिए तुम अपनी तोपें अपने पास रखो। हमें तुम हरा नहीं सकते। हमारे मर जानेपर हमारी जमीन तुम्हारे हाथ लगे तो ले लेना । यह न मान लेना कि जबतक हम जीवित हैं तबतक तुम हमारी जमीनको हाथ लगा सकते हो । ये मरे नहीं, जीवित हैं। उनके देशवासी उनकी बहादुरीकी गाथा पीढ़ियों तक गायेंगे । और सारी दुनिया भी इन मूरोंका उदाहरण देगी। ऐसा ही ट्रान्सवालके भारतीयोंके सम्बन्धमें है। उन सबको एक स्वरसे कहना चाहिए कि उन्होंने जो प्रतिज्ञा ली है उस प्रतिज्ञाका पालन करनेके लिए वे अपने प्राण तक उत्सर्ग करनेको तैयार हैं। उनको ऐसा ही करना है।

[ इन ] चार महीनोंमें बहुत-से भारतीयोंने बहादुरी दिखाई। बहुतोंने अच्छा काम किया। किन्तु बहुतोंने कमजोरी भी दिखाई। इस कमजोरीका फल हम चख रहे हैं। लड़ाई लम्बी हो रही है; लेकिन इससे क्या हुआ ? वह ज्यों-ज्यों लम्बी होती है त्यों-त्यों लड़नेवाले दृढ़ होते जाते हैं। ऐसा नहीं माना जा सकता कि सभी लोग एक-जैसी हिम्मत दिखायेंगे। यदि वैसा होता, तो फिर लड़ाईकी जरूरत ही नहीं रहती। फिर भी निम्नलिखित काम करनेकी जरूरत है :

(१) जितने लोग कर सकें, पूरी-पूरी हिम्मत रखकर मृत्यु-पर्यन्त संघर्ष करें ।

(२) जो लड़ न सकें वे दूसरोंको गिरानेका प्रयत्न न करें। उसके बजाय वे, जो लड़ें, उन्हें हिम्मत बँधायें । वे ऐसा न कर सकें तो चुप रहें। किन्तु कोई अच्छा काम करने लगे तो उसमें बाधा न डालें।

१. एक सत्याग्रही जो शहीद हो गया था, देखिए खण्ड ९, पृष्ठ २९८ ।

२, देखिए खण्ड ७, पृष्ठ २०६ ।


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