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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं है, क्योंकि उससे हमारा उद्देश्य पूरा नहीं होता । दक्षिण आफ्रिकामें लगभग डेढ़ लाख भारतीय हैं। गिरमिटिया भारतीयोंसे दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी शुरुआत हुई है। उसके पश्चात् स्वतन्त्र भारतीय प्रविष्ट हुए। वे व्यापारी थे, इसलिए गोरे व्यापारियोंकी आँखोंमें खटके। इससे ही आज दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय सवाल पैदा हुआ है। दक्षिण आफ्रिकामें हमारी स्थिति विषम है। नेटालमें, ऑरेंज फ्री स्टेटमें, केपमें और ट्रान्सवालमें ऐसे कई कानून हैं जो हमें नापसन्द हैं। ट्रान्सवालमें अधिक कष्ट हैं। युद्धसे पहले हमें जमीन खरीदनेका हक नहीं था। हमें मत देनेका हक नहीं था । हमको रास्तोंमें चलने और गाड़ियों में बैठने) की दिक्कतें थीं। ये सभी कानून अभी जारी हैं। किन्तु सन् १९०६ तक हम इन कानूनोंका कष्ट भोगते रहे । हमने आवेदनपत्र दिये। मेरे मित्र श्री हाजी हबीब ब्रिटिश एजेंटके पास जाया करते थे । उससे कुछ सहायता भी मिलती थी; किन्तु हमने इससे ज्यादा कार्रवाई नहीं की। परन्तु सन् १९०६ में जो कानून बनाया गया वह अलग तरहका था। उसकी उत्पत्ति पापसे हुई। उस कानूनसे वहाँ रहनेवालोंपर लांछन आता था, । और, इसके अलावा, इरादा दूसरा कानून बनाकर भारतीय मात्रको प्रविष्ट होनेसे रोकनेका था । ऐसा कानून पहले कभी ब्रिटिश उपनिवेशोंमें नहीं बनाया गया था। इस कानूनसे हमारे समाजपर हमला हुआ । इससे हमने विचार किया कि आवेदनपत्र काफी नहीं हैं। हम एक थियेटरमें इकट्ठे हुए। और उसमें श्री हाजी हबीबने सब लोगोंको कसम दिलाई और यह कसम उन सब लोगोंने ली कि यदि यह कानून पास हो जायेगा तो वे उसे मंजूर नहीं करेंगे और उसको तोड़नेकी जो सजा होगी उसको भोगेंगे। इसमें हमारा निजी स्वार्थ नहीं था । जहाँतक हमारे ही नुकसानकी बात थी वहाँतक तो हमने सब्र किया। किन्तु जब हमने ऊपरके मुताबिक आक्रमण होते देखा और जब हमने देखा कि यह बात ब्रिटिश राज्यकी जड़ खोदनेवाली है तब हमने चुप न बैठनेका निर्णय किया। हमारे सामने दो रास्ते थे । एक तो यह कि हम शरीर-बलके विरोध में शरीर- बलका प्रयोग करें। यह हमने नापसन्द किया। दूसरा रास्ता कानूनको न माननेका था । यह हमने इख्तियार किया। जैसे डैनियलने जो लौकिक कानून खराब लगा उसको मानने से इनकार किया था, वैसे ही हमने भी इनकार किया। इस अपराधमें ब्रिटिश सरकार भी शामिल है। उसको मालूम था कि इस कानूनसे हमारे हृदयको चोट पहुँचेगी। वह ट्रान्सवालके कानूनपर हस्ताक्षर करनेसे इनकार कर सकती थी; किन्तु उसने ऐसा नहीं किया । ब्रिटिश संविधान क्या है ? उसके अन्तर्गत सब लोगोंका समान अधिकार माना जाता है। ऐसे संविधानमें रहना मैं मंजूर कर सकता हूँ । किन्तु मुझे तो यह अनुभव हुआ है कि कानूनके मुताबिक एक से अधिकारका उपयोग भी हम नहीं कर सकते। मुझे यह कहना पड़ेगा कि ऐसे राज्यमें मैं तो नहीं रहूँगा । मेरा हिस्सा जो भी हो, मुझे इसकी परवाह नहीं है; किन्तु यदि मैं हिस्सेदार न माना जाऊँ और गुलाम समझा जाऊँ तो मैं इस तरह नहीं रह सकता । उक्त कानून ब्रिटिश

१. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४३०-३४ और ४५४ ।

२. देखिए पुरानी बाइबिल (ओल्ड टेस्टामेंट), डैनियल, अध्याय ६ ।


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