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शिष्टमण्डलपर अन्तिम टिप्पणी

राज्यका उच्छेदक है । और उस कानूनका विरोध करके हम भारतकी ही नहीं, बल्कि समस्त साम्राज्यकी सेवा करते हैं। यह सत्याग्रह हम ब्रिटिश सरकारके विरुद्ध भी कर रहे हैं। और मुझे उम्मीद है कि, यह सभा हमसे कहेगी कि हम जो कुछ कर रहे हैं वह उचित है । (तालियाँ) | हम इससे कम कुछ करें तो साम्राज्य में हिस्सेदारके रूपमें नहीं रह सकते। और जहाँ हिस्सा नहीं है, वहाँ साम्राज्य कैसा ? इसीलिए मैंने कहा है कि यह लड़ाई इस जमानेमें दुनियाकी बड़ीसे-बड़ी लड़ाई है । हम बिलकुल निःस्वार्थ भावसे लड़ रहे हैं और हम जिस हथियारका उपयोग करते हैं वह केवल आत्म-त्याग है। हम जो-कुछ माँगते हैं वह है कानूनमें एक-सा अधिकार | जनरल स्मट्स ऐसा करनेसे इनकार करते हैं। हम एक उदाहरण लें । कोई मालिक गुलामसे कहे कि तु मेरे साथ ही बैठना, तू मेरे साथ ही खाना खाना और वैसा ही खाना । किन्तु मेरे पास तेरी गुलामीका जो पट्टा है, वह तो जैसाका तैसा रहेगा । तो क्या वह गुलाम, जो छूटना चाहता है, ऐसा करार मंजूर कर लेगा ? उसको तो गुलामीका पट्टा फाड़ना है। ऐसी ही बात हमारी है। हम गुलामीके पट्टेको फाड़ना चाहते हैं ।

अब हम आपकी सहायता चाहते हैं। सत्याग्रहीके रूपमें हम किसीपर शरीर-बल नहीं आजमाते । न ऐसा चाहते हैं कि कोई दूसरा आजमाये । हम चाहते हैं कि आप हमारे संघर्षको समझें। यदि आपको हमारी लड़ाई ठीक लगे तो आप हमें प्रोत्साहन दे सकते हैं। आप ब्रिटिश सरकारको बता सकते हैं कि आप उसके इस अपराधमें शामिल नहीं हैं ।

इसके बाद सर रेमंड वेस्ट और सर फैड्रिक लेलीने भाषण दिये । मेजर सैयद हुसैन बिलग्रामीने भी जोशीला भाषण देते हुए कहा कि [ ट्रान्सवालकी ] इस लड़ाई के पीछे सारा भारत है। उसमें हिन्दू, मुसलमान और पारसी सब शामिल हैं। इसके बाद निम्नलिखित प्रस्ताव' सर्वसम्मतिसे स्वीकृत किया गया :

यह सभा ट्रान्सवालके भारतीयोंके नागरिक अधिकारोंकी माँग और उनके शान्तिपूर्ण तथा निःस्वार्थ संघर्षके प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करती है; और इस संघर्षको जारी रखनेमें पूर्ण प्रोत्साहन देती है।

इंग्लैंडमें इस तरह आन्दोलन चला। अब श्री रिच जगह-जगह जायेंगे । उनको ऑक्सफर्डमें और अन्यत्र भाषण देनेके निमन्त्रण मिले हैं। वे वहाँ भी जानेवाले हैं । ९ नवम्बरको वे कुमारी स्मिथके यहाँ बोले थे। उस सभामें एक सज्जनने ५०० व्यक्तियोंके हस्ताक्षर करानेका वचन दिया है।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन,
 

१८-१२-१९०९ और २५-१२-१९०९

१. मूल पाठके लिए देखिए इंडियन ओपिनियन, ११-१२-९९०९ ।


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