पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 10.pdf/१२०

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७. पत्र : ए० एच० वेस्टको:
यूनियन कैंसिल लाइन,
 
आर० एम० एस०, किल्डोनन कैंसिल,
 
नवम्बर २६, १९०९
 

प्रिय वेस्ट,

यह एक दफ्तरी पत्र है। मुझे आर्थिक कठिनाइयोंके बारेमें, सिवाय एक पत्रके जो श्री कार्डिसने श्री कैलेनबैकका बताकर भेजा था, और कुछ मालूम नहीं था । मैं कब कहाँ जाऊँगा, यह अनिश्चित है इसलिए मैंने श्री कैलेनबैकको पत्र लिख दिया है। इस स्थितिके लिए मुझे दुःख है। जो भी प्रबन्ध कर सकता था वे सब किये हैं। कई एक चीजें छापनेके बारेमें मेरी हिदायतें इस पत्रके साथ पढ़ी जानी चाहिए, पर डॉ० मेहताके आदेशपर यह बात लागू नहीं है ।

कुमारी स्मिथने स्वतः मुझे यह सूचना दी है कि अब आगे वे अपनी मासिक चिट्ठीके लिए पारिश्रमिक नहीं लेना चाहतीं; फिर भी वे अपने लेख भेजती रहेंगी। मैंने उन्हें बता दिया है कि वे किन विषयोंपर लिख सकती हैं। मेरा सुझाव है कि आप उन्हें धन्यवादका पत्र लिख दें ।

आर्थिक स्थितिको सन्तोषजनक स्थितिमें लानेके लिए आप जो भी अन्य परि- वर्तन आवश्यक समझें कर सकते हैं। परन्तु मैं काबाभाईकी सिफारिश करना चाहता हूँ। मेरा सुझाव है कि उन्हें हानि न पहुँचने पाये। जहाँतक डर्बन कार्यालयके बन्द करनेकी बात है, 'इस मामलेपर सावधानीके साथ विचार करनेकी आवश्यकता है। परन्तु यदि आप समझते हैं कि इसका बन्द कर देना अच्छा है, तो आप अवश्य ऐसा कर सकते हैं। जिन्हें अपना पत्र परिवर्त या भेंटमें भेजा जाता है उनकी सूचीमें आप जैसी चाहें कमी कर सकते हैं और अंग्रेजी स्तम्भोंका आकार घटा सकते हैं ।

१. जर्मन थियासॉफिस्ट; कुछ समय तक फीनिक्स स्कूलके प्रबन्धक रहे थे; भारत आये और सेवाग्राम में गांधीजी के साथ रहे । १९६० में वहीं स्वर्गवासी हुए ।

२. जर्मन गृहशिल्पी, गांधीजीके निष्ठाशील मित्र और सहयोगी; अपना फार्म सत्याग्रहियोंके हवाले कर दिया था। देखिए “पत्र : कैलेन वैकको”, पृष्ठ २८०-८१ ।

३. डॉ० प्राणजीवन मेहता, एम० डी०, बार-एट-लॉ, और जौहरी; उनका गांधीजीका साथ उसी समय से शुरू हुआ जब विद्यार्थीके रूपमें गांधीजीके लन्दन पहुँचनेपर उन्होंने उनका स्वागत किया था। फीनिक्सकी स्थापनाके समयसे लेकर अपनी मृत्यु-पर्यन्त (सन् १९३३) वे गांधीजीके कार्यों में आर्थिक सहायता देते रहे ।

४. प्रेसके एक कम्पोजिटर ।


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