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पत्र: रामदास गांधीकी

मैं तुम दोनोंको ही बताता हूँ कि यदि मणिलालकी इच्छा हो और बा स्वीकृति दे तो अब हमें मणिलालको इस संघर्षके लिए अर्पित कर देना है। इससे उसकी चंचल वृत्ति शान्त होगी। उसने यह मांग भी की है। किन्तु यदि ऐसा न हो तो उसका डर्बन जाना भी ठीक ही है, और तुम फीनिक्समें रह सकते हो । किन्तु यह आवश्यक होनेपर ही किया जाये। यह निश्चय कर लो कि यदि [ जोहानिसबर्गसे ] और रुपया न मिले, तो भी घबरायेंगे नहीं। लोगोंको जवाब यह देना कि रुपया न आयेगा तो तुम दूसरी कोई कमाई करके भी खर्च पूरा करोगे । यह भी ऐलान कर देना कि यदि अन्य कोई न रहेगा तो भी तुम तो फीनिक्समें ही मरोगे । तुम्हारे उत्साहको दूसरे तुरन्त ग्रहण करेंगे; किन्तु एक ही शर्त है कि इस उत्साहमें उद्धतपन न होना चाहिए; बल्कि आत्म-स्थिरता होनी चाहिए। वह उत्साह सच्चा होना चाहिए; कोरी डींग नहीं । यह निश्चय समझो कि उसका प्रभाव अवश्य पड़ेगा। अन्य कोई फेरफार करना उचित जान पड़े तो वह किया जा सकता है। यदि कहीं परिवर्तन ठीक न जँचे तो भी हो जाने देना । आर्थिक लाभ और हानिके विचारसे किसी बातपर आग्रह हरगिज न करना चाहिए। हम अज्ञानवश मान लेते हैं कि हमें अपनी मेहनतसे रोटी मिलती है यदि यह कहावत कि जिसने दाँत दिये हैं वह चबेना भी देगा ही, ठीक-ठीक समझ ली जाये तो अच्छा हो ।

प्रभुदास गांधीके 'जीवननुं परोढ' में गांधीजीके स्वाक्षरोंमें लिखित मूल पत्रके चित्रसे ।

९. पत्र : रामदास गांधीको
यूनियन कैसिल लाइन,
 
आर० एम० एस० किल्डोनन कैंसिल,
 
बुधवार, [ नवम्बर २७, १९०९]
 

चि० रामदास',

हम कब मिलेंगे इसकी कुछ खबर नहीं; इसलिए यह पत्र लिख रहा हूँ । तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं लाया इससे बापूपर नाराज़ मत होना । मुझे कोई चीज पसन्द नहीं आई। मुझे यूरोपकी कोई भी चीज पसन्द नहीं आती तो क्या करूँ ? मुझे तो भारतका सब-कुछ पसन्द है। यूरोपके लोग ठीक हैं। उनका रहन-सहन ठीक नहीं है। मिलनेपर विस्तारसे समझाऊँगा ।

१. श्रीमती कस्तूरबा गांधी, गांधीजीकी पत्नी और मणिलाल गांधीकी माता ।

२. गांधीजीके तृतीय पुत्र ।

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