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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

[ गांधीजी : ] सत्याग्रह तीन सालसे जारी है और अब ट्रान्सवाल- सरकार और ब्रिटिश भारतीयोंके बीच विवादका विषय क्या है, यह यथासम्भव पूर्णतया स्पष्ट है। हम इस दौरानमें बराबर भारतसे आनेवाले भावी प्रवासियोंके सम्बन्धमें कानूनी अथवा सैद्धान्तिक समानताके लिए लड़ते रहे हैं । हम ट्रान्सवालके इस दृष्टिकोणको पूर्णतया स्वीकार करते हैं कि भारतसे आनेवाले प्रवासियोंकी बहुत सख्त परीक्षा होनी चाहिए । परन्तु हमने सदैव यह माना है कि इस स्थितिको लानेका तरीका सम्पूर्ण भारतको चोट पहुँचानेवाला नहीं होना चाहिए, जैसा कि इस समय है; और अन्य उपनिवेशों में इसका जो विधान है उससे अलग नहीं होना चाहिए। ट्रान्सवालका विधान अपने ढंगका पहला है ।

ट्रान्सवालसे भारतीयोंको इसलिए निकाला और बाहर रखा जाता है कि वे भारतीय हैं; अर्थात् यह निष्कासन और प्रतिबन्ध प्रजाति या रंगके आधारपर है । इसके विपरीत, अन्य उपनिवेशोंमें आस्ट्रेलियामें भी, कठोर शैक्षणिक परीक्षा ही इसका आधार है । प्रवासी विभागकी देखरेखमें जो प्रशासक होते हैं, उनकी हिदायतसे यह परीक्षा कड़ी या आसान कर दी जाती है ।

इसके विरुद्ध हमें कुछ नहीं कहना है; परन्तु मुझे लगता है कि सिद्धान्तमें पूर्ण रूपसे समानता बनी रहनी चाहिए, नहीं तो 'ब्रिटिश संविधान' और 'ब्रिटिश प्रजा सर्वथा अर्थहीन शब्द हो जायेंगे ।

मुझे अभी तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिसने इस प्रश्नका अध्ययन किया हो और फिर जिसे हमने जो रुख अख्तियार किया है उसके विरुद्ध कुछ कहना हो । इस अनुचित असमानताको जान-बूझकर कानूनकी पुस्तकमें बनाये रखना ही विचारणीय प्रश्न है । मैं ट्रान्सवालकी अन्दरूनी विधि-व्यवस्थाके बारेमें, यद्यपि वह बुरी है, कुछ नहीं कहता; परन्तु उस मूलभूत मुद्देकी बात करता हूँ जिसकी ओर मैंने ध्यान दिलाया है । मैं यह भी कह दूं कि संघर्ष पूर्णतया आदर्श बन गया है. • इस अर्थ में कि जो इसमें लगे हैं उनका अपना कोई निजी स्वार्थ नहीं है । वे केवल एक सिद्धान्तके लिए लड़ रहे हैं। संघर्षका जो तरीका अपनाया गया है, वह भी आदर्शमय है, क्योंकि हम उस कानूनकी, जिसे हम अपनी अन्तरात्मा और स्वाभिमानका विरोधी मानते हैं, अवज्ञा करके व्यक्तिगत कष्ट सहनके द्वारा राहत पाना चाहते हैं ।

हम कष्ट सहते हैं, यही सजा है; इस तरह २,५०० से ऊपर भारतीय ट्रान्सवालमें कैद भुगत चुके हैं- • और कुछ तो चार-चार बार भी । इस संख्या में व्यापारी, फेरी- वाले, नौकर और समस्त विभिन्न धर्मोके अनुयायी हैं। और आज प्रो० गोखलेका तार मिला है । वे कलकत्ता वाइसरॉय परिषदके एक सदस्य हैं। तारमें उन्होंने कहा है कि भारतके एक करोड़पति श्री रतन जमशेदजी टाटाने २५,००० रुपयों (१,६३० पौंड) का चन्दा सत्याग्रहियोंके लिए भेजा है । अभीतक हमने दक्षिण आफ्रिकाके बाहरसे चन्देकी माँग नहीं की है । परन्तु, चूंकि संघर्षके लम्बे होनेसे बहुतेरे भारतीय परिवार गरीब हो गये हैं, हमारे लिए दक्षिण आफ्रिकाके बाहरसे भी सहायता स्वीकार करना आवश्यक हो गया है । इंग्लैंडमें बहुत-से अंग्रेजों और भारतीयोंने स्वेच्छासे चन्दे जमा किये हैं


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